SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 587
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धघोसुप्पत्ति बुद्धघोसुप्पत्ति (बुद्धघोषोत्पत्ति) बुद्धघोष की जीवनी के रूप में लिखी गई रचना है। इसके प्रणेता महामंगल नामक सिंहली भिक्षु थे, जो 'गन्धट्ठि' नामक (उपसर्गसम्बन्धी) व्याकरण-ग्रन्थ के भी रचयिता थे । इनका काल चौदहवीं शताब्दी है। 'बुद्धघोसुप्पत्ति' में अलौकिक विधान इतना अधिक है कि उसका वास्तविक ऐतिहासिक महत्त्वांकन नहीं किया जा सकता। वुद्धघोप की बाल्यावस्था और प्रारंभिक शिक्षा तथा धर्म-परिवर्तन का वर्णन करते समय ऐसा मालूम पड़ता है मानो 'मिलिन्द पह' के नागसेन और रोहण तथा 'महावंस' (परिच्छेद ५) के सिग्गव तथा मोग्गलंपत्त तिस्स सम्बन्धी प्रकरणो के नम्नों को ही रूपान्तर कर के रख दिया गया है। यद्यपि लेखक ने बुद्धघोष के जन्म, बाल्यावस्था, प्राम्भिक शिक्षा, धर्म-परिवर्तन, ग्रन्थ-रचना आदि सभी का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, किन्तु ऐतिहामिक बुद्धि का उसने अधिक परिचय नहीं दिया है। बुद्धदत्त-कृत 'विनय-विनिच्छय' के अनुसार बुद्धदन ने बुद्धघोप-कृत विनय और अभिवम्म पिटक सम्बन्धी अट्ठकथाओं को ही क्रमग: अपने 'विनय विनिच्छ्य' और अभिधम्मावनार' के रूप में संक्षिप्त रूप दिया था। किन्तु 'बुद्धघोसुप्पत्ति' में बुद्धदत्त का प्रथम लंका-गमन दिखा कर बुद्धघोप को अपना अपूर्ण काम पूरा करने का आदेश देते दिखाया गया है। निश्चय ही 'विनय विनिच्छय' का ही प्रमाण यहाँ दृढ़तर माना जा सकता है। इस प्रकार की एक-दो ऐतिहासिक भूलें 'बुद्धघोसप्पन्ति' के रचयिता ने और भी की है। वास्तव में बात यह है कि स्थविर १. जेम्स ग्रे द्वारा रोमन लिपि में सम्पादित, लन्दन १८९२ । २. देखिये मेबिल बोड : दि पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ २६, डे जॉयसा। केटेलाग , पृष्ठ २३; देखिये आगे दसवें अध्याय में व्याकरण-साहित्य का विवेचन भी। ३. देखिये विमलाचरण लाहा दि लाइफ एंड वर्क ऑब बुद्धघोष, पृष्ठ ४४-४७; देखिये उन्हीं का 'हिस्ट्री आव पालि लिटरेचर', जिल्द दूसरी, पृष्ठ ५५९; मिलाइये जेम्स द्वारा सम्मादित एवं अनुवादित बुद्धघोप्पति'को भूमिका भी। ४. देखिये विमलाचरण लाहा : दि लाइफ एंड वर्क ऑव बुद्धघोष, पृष्ठ ४३-४४ ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy