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________________ ( ५३९ ) -टीका' हैं जो धम्मसिरि (धर्मश्री) रचित 'खुद्दक - सिक्खा' की टीका है । म्थविर मंघरक्खित से पहले महायास ने भी 'खुदक - सिक्खा' पर 'खुद्दक सिक्खा - टीका' नाम से ही एक टीका लिखी थी । इन दोनों में भेद करने के लिए स्थविर संघ - रक्तकृत टीका को 'अभिनव - खुद्दक सिक्ख टीका' और महायास कृत टीकाको 'पोराण- खुद्दक - सिक्खा टीका' भी कहा जाता है । ये दोनोंटीकाएँ हस्तलिखित प्रतियों के रूप में आज भी सिंहल में सुरक्षित हैं । स्थविर बुद्धनाग की रचना 'विनयत्थ मंजूसा' है, जो कंखा वितरणी ( पातिमोक्ख पर बुद्धघोष कृत अट्ठकथा ) की टीका है । यह टीका भी सिंहल में हस्तलिखित प्रति के रूप में सुरक्षित है । प्रसिद्ध सिंहली भिक्षु वाचिस्सर ( वागीश्वर ) अनेक ग्रन्थों के रचयिता थे । ‘गन्धवंस' में उनके १८ ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। प्रसिद्ध वेदान्ती आचार्य वाचस्पति मिश्र और इन स्थविर ( वाचिस्सर ) के नाम या उपनाम में समानता होने के साथ साथ दोनों की विद्वत्ता भी प्रायः समान रूप से गहरी और विस्तृत है । स्थविर वाचिस्सर की प्रधान रचनाएँ ये है - ( १ ) मूलसिक्खा टीका-यह टीका महास्वामी ( महासामी ) कृत 'मूल - सिक्खा' की टीका है । वाचिस्सर से पहले विमलसार ने भी इसी ( मूलसिक्खा टीका) नाम की एक टीका “मूल - सिक्खा' पर लिखी थी । अतः विमलसार कृत टीका 'मूल सिक्खा-पोराण टीका' कहलाती है और वाचिस्सर - कृत टीका' ' मूल - सिक्खा - अभिनव टीका' (२) सीमालंकार संगह ( विनय - संबंधी ग्रन्थ, जिसमें विहार की सीमा का निर्णय किया गया है। जहां तक के भिक्षु विशेष संस्कारों में सम्मिलित होने के लिए किसी एक विहार में एकत्रित हों, वह उस विहार की सीमा कहलाती है) (३) खेमप्पकरणटीका—यह टीका भिक्षु खेम ( क्षेम ) कृत 'खेमप्पकरण' की टीका है । ( ४ ) नामरूप परिच्छेद टीका - यह अनिरुद्ध (पालि अनुरुद्ध ) कृत 'नाम 'रूप परिच्छेद' की टीका है । (५) सच्चसंखेप टीका - यह स्थविर आनन्द के शिष्य चूल धम्मपाल- कृत 'सच्च संखेप' की टीका है । ( ६ ) अभिधम्मावतारटीका - यह रचना बुद्धदत्त - कृत 'अभिधम्मावतार' की टीका है । (७) 'स्पारूप १ १. इस विषय पर पन्द्रहवीं शताब्दी में बरमी भिक्षु संघ में एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। देखिये आगे दसवें अध्याय में कल्याणी-अभिलेख का विवरण ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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