SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 543
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५२२ ) १८. दृष्टि की विशुद्धि का निर्देश (दिट्ठिविसुद्धि निद्देसो)--नाम और रूप का यथावत् दर्शन ही दृष्टि-विशुद्धि है-इसका विस्तृत विवरण। १९. संशय को पार करने के रूप में विशुद्धि का निर्देश (कंखावितरणविसुद्धि निद्देसो)--यथाभूत ज्ञान, सम्यक् दर्शन और संशय को पार करना, यह सब एक ही वस्तु हैं, केवल शब्द नाना हैं। २०. मार्ग और अमार्ग के ज्ञान और दर्शन के रूप में विशुद्धि का निर्देश ( मग्गामग्गत्राणदस्सनविसुद्धि निद्देसो ) पदार्थों के उदय और व्यय को देखना एवं विपश्यना-प्रज्ञा की भावना करना ।। २१. प्रतिपदा (मध्यम-मार्ग) के ज्ञान और दर्शन के रूप में विशुद्धि का निर्देश (पटिपदाञाणदस्सनविसुद्धि निद्देसो)--'न मैं, न मेरा, न मेरा आत्मा, अर्थात् अनात्म तत्व की भावना का विवरण ।। २२. ज्ञान और दर्शन रूपी विशुद्धि का निर्देश (ञाणदस्सनविसृद्धि निद्देसो)--स्रोतापत्ति, सकृदागामी, अनागामी और अर्हत्, इन चार मार्गों सम्बन्धी ज्ञान का विवरण । बोधिपक्षीय धर्मों का भी इन्हीं के अन्दर समावेश । २३. प्रज्ञा की भावना के सुपरिणामों का निर्देश (पञा भावनानिसंसनिद्देसो)--नाना चित्त-मलों का विध्वंस, आर्य-फल के रस का अनुभव, निरोधसमाधि को प्राप्त करने की योग्यता और लोक में पूज्य होने की पात्रता, प्रज्ञाकी भावना के इन चारस्परिणामों का विवरण । उपयुक्त विषय-सूची के संकेत-मात्र से स्पष्ट है कि 'विशद्धि-मार्ग' का क्षेत्र कितना अधिक विस्तृत है । अतः यदि इतने निरूपण से हम केवल यह भी इंगित करने में सफल हो सके कि 'विशुद्धि-मार्ग' बुद्ध-धर्म सम्बन्धी महान् ज्ञानकोश को संचित किये हुए है, तो भी हमने पालि साहित्य की दृष्टि से अपना कर्तव्य पूरा कर दिया । विवरण में आगे चले जाने पर तो इस विषय का अन्त ही नहीं हो सकता, क्योंकि पातंजल योग के साथ इसका तुलनात्मक अध्ययन किये बिना कोई इस सम्बन्धी विवेचन पूरा नहीं माना जा सकता। अब हम बुद्ध घोष की अट्ठकथाओं पर आते हैं। समन्तपासादिका ___ समन्तपासादिका पूरे विनय-पिटक की अट्ठकथा है । आचार्य बुद्धघोष की रची हुई यह सम्भवतः प्रथम अट्ठकथा है । बुद्ध श्री (बुद्धसिरि) नामक
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy