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________________ ( ५११ ) "स्थविर ज्योतिपाल के साथ काञ्चीपुर तथा अन्य स्थानों में रहते हुए मैने उनकी प्रार्थना पर इस अट्ठकथा को लिखना आरम्भ किया"।' इस प्रकार बुद्धघोष ने चुंकि अपने जीवन का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य दक्षिण के इन नगरों में ही किया, अतः वे दक्षिण के ही निवासी थे, ऐसा निष्कर्ष आचार्य धर्मानन्द कोसम्बी ने उनकी अट्ठकथाओं के साक्ष्य पर निकाला है, जो उस हद तक ठीक कहा जा सकता है । फिर भी उनका जन्म-स्थान भी दक्षिण-प्रान्त था, यह उपर्युक्त विवरणों से प्रमाणित नहीं हो जाता । अधिक से अधिक हम यही कह सकते हैं कि उनका जीवन-कार्य अधिकतर दक्षिण-भारत में किया गया। 'महावंस' के ऊपर उद्धृत अंश और 'बुद्धघोसुप्पत्ति' आदि में भी बुद्धघोषाचार्य को ब्राह्मण कहा गया और उन्हें तीनों वेद, नाना शिल्लों तथा पातंजल योग आदि मतों का पारङ्गत कहा गया है । आचार्य धर्मानन्द कोसम्वी ने उनके ब्राह्मण होने में भी सन्देह किया है और इसी प्रकार उनके वेद तथा पातंजल मत आदि शास्त्रों में पारंगत होने के में भी सन्देह प्रकट किया है । बुद्धघोष के ब्राह्मण न होने के विषय में आचार्य धर्मानन्द कोसम्बी ने यह तर्क दिया है कि बुद्धघोष को वेद के पुरुष-सूक्त जैसे महत्त्वपूर्ण अंश से भी जानकारी नहीं थी, क्योंकि इस सूक्त की एक ऋचा में क्षत्रिय को ब्रह्मा के बाहु से उत्पन्न बताया गया है,जब कि बुद्धघोष न इसी सूक्त की ओर संकेत करते हुए उसे हृदय से उत्पन्न बता डाला है। चूंकि बाहु और हृदय दोनों ही साहस १. आयाचितो समतिना थेरेन भदन्त-जोतिपालेन। कञ्चीपुरादिसु मया पुब्बे सद्धि वसन्तेन ॥ अट्ठकथं अंगुत्तरमहानिकायस्स कातुमारद्धो॥ २. देखिये उनके द्वारा सम्पादित 'विसुद्धिमग्ग' का अंग्रेजी-प्राक्कथन, पृष्ठ १५-१८। ३. मिलाइये बुद्धघोसुप्पत्ति “सत्तवस्सिककाले सो तिण्णं वेदानं पारगू अहोसि" (सात वर्ष की अवस्था में ही वह (बुद्धघोष) तीनों वेदों का पारंगत हो गया) ४. पुरुष सूक्त में शब्द हैं-बाहू राजन्यः कृतः' जब कि बुद्धघोष ने लिखा है 'खत्तिया उरतो निक्खन्ता' (क्षत्रिय हृदय से निकले) । विसुद्धिमग्ग (कोसम्बोजी द्वारा
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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