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________________ ( ४९९ ) आगे वुद्धघोष के जीवन-विवरण से भी यही स्पष्ट होगा कि 'महाविहार' की परम्परा पर आश्रित सिद्धान्तों के अनुसार ही उन्होंने अपने विशाल अट्ठकथा साहित्य की रचना की है। यहाँ यह भी कह देना अप्रासंगिक न होगा कि 'महाविहार' के अलावा 'उत्तर विहार' नामक एक अन्य विहार के भिक्षुओं की परम्परा भी उस समय प्रचलित थी। बुद्धदत्त का 'उत्तरविनिच्छ्य' उसी पर आधारित है। प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं को अपनी रचनाओं का आधार स्वीकार करने के अतिरिक्त आचार्य बद्धघोष ने 'प्राचीन स्थविरों (पोराणकत्थेरा) या 'प्राचीनों' 'पुराने लोगों (पोराणा) के मतों के उद्धरण अनेक बार अपनी अट्ठकथाओं में दिये हैं । ये 'प्राचीन स्थविर' या 'पुराने लोग' कौन थे ? 'गन्धवंस' के मतानुसार प्रथम तीन धर्म-संगीतियों के आचार्य भिक्षु, आर्य महाकात्यायन को छोड़कर, 'पोराणा' या 'पुराने लोग' कहलाते है । सम्भवतः प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं में इन प्राचीन आचार्यों के मतों का उल्लेख था। वहीं से उनका पालि रूपान्तर कर आचार्य बुद्धघोष ने अपनी अट्ठकथाओं में ले लया है । इन 'पोराणों' के उद्धरणों की एक बड़ी विशेषता यह है कि ये प्रायः पद्य-मय है और अनेक उद्धरण जो बुद्धघोष की अट्ठकथाओं में मिलते हैं, बिलकुल उन्हीं शब्दों में 'महावंस' में भी मिलते हैं । इससे इस मान्यता को दृढ़ता मिलती है कि बुद्धघोप की अटकथाएँ और 'महावंस' दोनों के मूल स्रोत और आधार प्राचीन सिंहली अट्ठकथाएँ ही है । 'यथाहु पोराणा' (जैसा पुराने लोगों ने कहा) या 'तेने वे पोराणकत्थेरा' (इसी प्रकार प्राचीन स्थविर) आदि शब्दों से आरम्भ होने वाले इन 'पोराण' आचार्यों के उद्धरणों को बुद्धघोष की अट्ठकथाओं और 'विसद्धिमग्ग' से यदि संग्रह किया जाय और 'दीपवंस' आदि के इसी प्रकार के साक्ष्यों से उसका मिलान किया जाय तो प्राचीन बौद्ध परम्परा सम्बन्धी एक व्यवस्थित १. 'पोराणों के कुछ उद्धरणों के लिए देखिये विमलाचरण लाहा : दि लाइफ एंड वर्क ऑव बुद्ध कोष, पृष्ठ ६५-६७ २. देखिये आगे नवें अध्याय में गन्धवंस को विषय-विस्तु का विवेचन।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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