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________________ ( ४८८ ) प्रकार के हैं कि उनका संक्षेप देना बड़ा कठिन है । केवल कुछ उदाहरण देकर हम उनके स्वरूप और शैली की ओर संकेत भर कर सकेंगे। भदन्त के चरणों में गिर रखकर, हाथ जोड़कर राजा ने कहा, "भन्ते नागसेन, "! भगवान् ने यह कहा “आनन्द ! पाँच सौ वर्ष तक सद्धर्म ठहरेगा।" पुनः जब परिनिर्वाण के समय सुभद्र परिव्राजक ने भगवान् से पूछा तो उन्होंने कहा 'सुभद्र ! यदि भिक्षु ठीक तरह विहार करेंगे तो यह लोक अर्हतों से कभी शून्य नहीं होगा।' यदि भन्ने नागसेन ! तथागत से यह कहा कि सद्धर्म पांच सौ वर्ष ठहरेगा तब तो यह वचन कि यह लोक कभी अर्हनों से शून्य नहीं होगा, मिथ्या ठहरता है। और यदि तथागत ने यह कहा कि यह लोक कभी अर्हतों से शून्य नहीं ठहरेगा, तो फिर यह वचन कि मद्धर्म पाँच सौ वर्ष ठहरेगा, मिथ्या ठहरता है ? भन्ते नागमेन ! यह दोनों ही ओर से कठिनता पैदा करने वाला, गहन मे भी गहनतर, वलवान् से भी बलवत्तर, जटिल से भी जटिलतर, प्रश्न आपकी सेवा में उपस्थित है।” “भन्ते नागसेन ! भगवान् ने यह कहा है 'भिक्षुओ ! मै जानकर ही धर्मोपदेश करता हूँ, बिना जाने नहीं ।' पुनः उन्होंने विनय प्राप्ति के समय यह भी कहा 'आनन्द ! यदि संघ चाहे तो मेरे बाद छोटे-मोटे (क्षुद्रानुभद्र) शिक्षापदों को छोड़ दे । भन्ते नागसेन ! क्या शुद्रानुक्षुद्र शिक्षापद विना जान बूझकर ही दिये हुए उपदेश हैं जो भगवान् ने उन्हें अपने बाद छोड़ देने के लिए कहा । भन्ते नागसेन ! यदि भगवान् का यह कहना ठीक है कि मैं जान बूझकर ही उपदेश करता हूँ, विना जाने-बूझे नहीं, तो भगवान् का यह वचन मिथ्या है 'यदि संघ चाहे तो मेरे बाद क्षुद्रानुक्षुद्र शिक्षापदों को छोड़ दे, और यदि सचमुच ही भगवान् ने यह कहा कि मेरे बाद संघ क्षुद्रनुक्षुद्र गिक्षापदों को छोड़ दे, तो उनका यह कहना मिथ्या है कि मैं जानबूझकर ही उपदेश करता हूँ, बिना जाने बुझे नहीं'। यह भी दोनों ओर से कठिनता पैदा करने वाला सूक्ष्म, निपुण, गंभीर और उलझन पैदा करने वाला प्रश्न है जो आपकी सेवा में उपस्थित है । आप मुझे समझावें ।” “भन्ते नागसेन ! भगवान् ने कहा है 'तथागत को धर्मों में आचार्य-मुष्टि (न बताने योग्य बात) नहीं है ।' किन्तु जब मालुक्यपृत्त ने उनसे प्रश्न पूछा तो भगवान् ने उसकी व्याख्या नहीं की, उसे नहीं
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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