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________________ ( ४८५ ) राजा की समझ में यह उत्तर नहीं आता । स्थविर उदाहरण देकर समझाते हैं कि जब पुरुष बच्चा होता है और जब वह तरुण युवा होता है, तब क्या वह बालक और युवा एक ही होता है ? नहीं ऐसा नहीं होता। बालक अन्य होता है और वह तरुण युवा अन्य होता है। किन्तु यदि यही मान लिया जाय कि वालक अन्य होता है और तरुण अन्य होता है तो फिर न कोई किसी की माता रहेगी, न कोई किसी का पिता रहेगा, न आचार्य रहेगा . . . . . . . . ! फिर तो ऐसी ही प्रतीति होगी कि यह गर्भ की प्रथम अवस्था की माता है, यह दूसरी अवस्था की माता है, यह तीसरी अवस्था की, जो सब आपस में भिन्न भिन्न हैं, अन्य से अन्य हो गये हैं। क्या एक ही व्यक्ति के बालकपन की माँ भिन्न है उसकी युवावस्था की माँ से ? अञा खुद्दकस्स माता अआ महन्तस्स माता ! विद्यार्थी जब पाठशाला में पढ़ने जाता है तब क्या वह अन्य ही हैं ? और जब वह विद्याध्ययन समाप्त करता है अन्य ही है ? 'असो सिप्पं सिक्खति अञो सिक्खितो भवति-- अन्य ही शिल्प सीखता है, अन्य ही शिक्षित होता है ? अन्य ही पाप करता है और अन्य के ही अपराध-स्वरूप हाथ-पैर काटे जाते है ? राजा घबड़ा जाता है क्योंकि वह पहले स्वयं ही स्वीकार कर चुका है कि वालक अन्य होता है और तरुण अन्य । अतः कुछ समझ नहीं सकता कि उसे क्या कहना चाहिए । विवंश होकर वह भदन्त नागसेन से कहता है “भन्ते ! आप ही मुझे बताइये कि क्या बात है? त्वं पन भन्ते एवं वुत्ते कि वदेय्यासीति । भन्ते ! ऐसा पूछने पर आप स्वयं क्या कहेंगे ? स्थविर उसे समझाते हैं कि “धर्मों के लगातार प्रवाह से, उनके संघात रूप में आजाने मे, एक उत्पन्न होता है, दूसरा निरुद्ध होता है, और यह सब ऐसे होता है जैसे मानो युगपत्, एक-साथ हो। इसलिए न तो सर्वथा उसी की तरह और न सर्वथा अन्य की तरह, वह जीवन की अन्तिम चेतनावस्था पर आता है।"१ फिर भी मिलिन्द पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं हो पाता और वह पूछता है १. एवमेवं खो महाराज धम्मसति सन्दहति, अञो उप्पज्जति, अञो निसन्झति, अपुब्बं अचरिमं विय सन्दहति, तेन न च सो न च अओ पुरिस
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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