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________________ ( ४८३ ) वास्तव में ? भन्ते ! आप असत्य बोल रहे है कि 'नागसेन' नाम का कोई व्यक्तित्व यथार्थ में विद्यमान नहीं है !" वितंडावादी मिलन्द की बुद्धि को परिश्रान्त जानकर भदन्त नागसेन उमे कुछ आसान मार्ग से समझाना चाहते हैं। “महाराज! आपका जन्म तो क्षत्रिय-कुल में हुआ है। इसलिए स्वभावतः आप सुकुमार हैं। फिर भी आप इतनी गर्मी में दोपहर को यहाँ चले ही आये। मुझे विश्वास है कि आप जरूर थक गये होंगे। आप पैदल आये है या रथ पर?" "भन्ते ! मैं पैदल नहीं चलता हूँ। मैं रथ पर आया हूँ।" "महाराज ! यदि आप रथ पर आये हैं तो कृपया मुझे यह बताइये कि रथ है क्या?" "क्या रथ के बाँस रथ हैं ?" "नहीं भन्ते! रथ के बाँस रथ नहीं हो सकते।" "तो क्या धुरा, पहिये, रस्से, जुआ, पहियों के डंडे, अथवा बैल हांकने की लाठी, रथ हैं ?" "नहीं भन्ते !" “तो फिर कहिये कि क्या रथ इनसे अलग कोई वस्तु है ?" "नहीं भन्ते ! यह कैसे हो सकता है !" "राजन् ! मैं पूछ पूछ कर हार गया। उस पर भी मैं न जान सका कि यथार्थ में रथ क्या है ? तो फिर क्या आपका रथ केवल एक नाममात्र है ? राजन ! आप असत्य बोल रहे है कि आप रथ पर आये है। आप इस सारे जम्बुद्वीप (भारतवर्ष) में सब से प्रतापी राजा हैं। तो फिर आप किसके डर से असत्य बोल रहे है ?" "भन्ते ! मैं असत्य नहीं बोल रहा हूँ। रथ के बाँस, पहिये, रथ का ढाँचा, पहियों के डंडे, हाँकने की लकड़ी, इन भिन्न भिन्न हिस्सों पर 'रथ' का अस्तित्व निर्भर है। 'रथ' एक शब्द है जो केवल व्यवहार के लिये है। "रथोति संखा समा पञत्ति वोहारो नाममत्तं पवत्तीति ।" "ठीक है महाराज ! आपने यथार्थ 'रथ' को समझ लिया। ठीक इसी प्रकार व्यक्ति की भी हालत है। रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान, इन पाँच स्कन्धों पर मेरा अस्तित्व निर्भर है। 'नागसेन' शब्द केवल व्यवहारमात्र है । यथार्थ में
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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