SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४७७ ) ओपम्मकथापहं । उपर्युक्त चीनी अनुवाद में, जिसका नाम वहाँ 'नागमेन सूत्र' दिया गया है, चौथे अध्याय से लेकर मातवें अध्याय तक नहीं है । इससे स्वाभाविक नोर पर विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि 'मिलिन्द पञ्ह' के पहले तीन अध्याय हो ग्रन्थ के मौलिक स्वरूप के परिचायक है और वाकी बाद के परिवर्द्धन मात्र हैं । सेना और वार्थ आदि अनेक विद्वानों के अलावा गायगर' और विटरनिन्जर भी इसी मत के मानने वाले है । उन्होंने इसी के समर्थन में अन्य कारण भी दिये है । एक सब से बड़ा कारण तो यही है कि हमारे प्रस्तुत पालि मिलिन्द पञ्ह में ही नृतीय अध्याय के अन्त में लिखा है " मिलिन्दस्स पञ्हानं पुच्छाविस्मज्जना निकिता अर्थात् “मिलिन्द के प्रश्नों के उत्तर समाप्त हुए।" इतना ही नहीं आगे चौथे अध्याय के प्रारम्भ में जो गाथाएँ आती हैं, वे एक नये ही प्रकार से विषय की प्रस्तावना करती हैं । "वक्ता, तर्कप्रिय, अत्यन्त बुद्धि-विशारद ( गजा) मिलिन्द ज्ञान - विवेचन के लिए नागसेन के पास आया । " 3 जब पहले मिलिन्द के प्रश्न समाप्त ही कर दिये गए तो फिर इस प्रकार विषय का दुबारा अवतरण करने की क्या आवश्यकता थी ? निश्चय ही निष्पक्ष समालोचक को इस चौथे अध्याय के बाद के भाग की मौलिकता और प्रामाणिकता में मन्देह होने लगता है । यह भी कितने आश्चर्य की बात है कि आचार्य बुद्धघोष ने भी 'मिलिन्द पञ्ह' के जिन अवतरण को उद्धृत किया हैं वे प्रायः प्रथम तीन अध्यायों से ही है । अतः उन्ही को अप आकृत अधिक प्रामाणिक मानना पड़ता है । जहाँ तक इन प्रथम तीन अध्यायों की भी प्रामाणिकता का सवाल है, उनके विषय में भी कुछ विद्वानों ने सन्देह प्रकट किया है । स्वयं विंटरनित्ज़ ने प्रथम अध्याय के कुछ अंशों को मौलिक नहीं माना है । उनके मतानुसार ग्रन्थ की मौलिक प्रस्तावना अपेक्षाकृत कुछ छोटी थी । गायगर भी इस मत में उनके साथ सहमत हैं ।" इसी प्रकार तृतीय अध्याय (विमतिच्छेदन पञ्हो) में भी निरन्तर परिवर्द्धनों की सम्भावना स्वीकार की गई है । इस परिच्छेद १. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ २७ २. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिचरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १७६-१७७ ३. भस्सप्पवेदी वेतंडी अतिबुद्धिविचक्षणो । मिलिन्दो ञाणभेदाय नागसेनमुपागम ॥ ४. ५. ऊपर उद्धृत क्रमशः २ एवं १ पद-संकेतों के समान
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy