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________________ छठा अध्याय पूर्व - बुद्धघोष - युग (१००ई० पूर्व से ४०० ई० तक) तेपिटक बुद्ध वचनों का अन्तिम संकलन तृतीय शताब्दी ईसवी पूर्व क्रिया गया। तब से उनका रूप पूर्णतः निश्चित हो गया । ईसा की चौथी - पांचवीं शताब्दी में बुद्धदत्त, बुद्धघोष और धम्मपाल ने उन पर अपनी प्रसिद्ध अट्ठकथाएँ लिखीं । पालि-त्रिपिटक के सुनिश्चित रूप धारण कर लेने और इन अट्ठकथाओं के रचना-काल के बीच जिस साहित्य की रचना हुई, उसमें नेत्तिपकरण, पेटकोपदेस और मिलिन्दपञ्ह अधिक प्रसिद्ध हैं । इनका विवरण हम इस परिच्छेद में देंगे । नेत्तिपकरण 'नेत्तिपकरण' का संक्षिप्त नाम 'नेत्ति' भी है । इसी को नेत्तिगन्ध' (नेत्तिग्रन्थ) भी कहते हैं | जैसा उसके नाम से स्पष्ट है, 'नेत्तिपकरण' सद्धम्म को समभाने के लिये नेतृत्व या मार्ग-दर्शन का काम करता है । 'नेत्ति' का अर्थ है मार्गदर्शिका । वास्तव में बुद्ध वचन इतने सरल और हृदयस्पर्शी हैं कि उनको समझने के लिये उनसे व्यतिरिक्त अन्य किसी सहायक की आवश्यकता नहीं । एकान्तचिन्तन हो, बुद्ध वचन हों, उनके बीच मध्यस्थता करने की किसी को आवश्यकता नहीं । किन्तु पंडितवाद बुद्ध धर्म में भी चल पड़ा । सरल बुद्ध उपदेशों का वर्गीकरण किया गया, उनके पाठ का नियमबद्ध ज्ञान प्राप्त करने के लिये शास्त्रीय नियम बनाये गये, उनके मन्तव्यों को भिन्न भिन्न दृष्टियों से सूचीबद्ध किया गया, उनके शब्दों की व्याख्या और उनके तात्पर्य का निर्णय करने के लिये ग्रन्थ-रचना की गई। इस प्रवृत्ति के प्रथम लक्षण हम अभिधम्मपिटक में ही देखते हैं । उसी का प्रत्यावर्तन हमें 'नेत्तिपकरण' और 'पेटकोपदेस' जैसे ग्रन्थों में मिलता है । 'नेतिपकरण' का सम्बन्ध एक प्रकार से तेपिटक बुद्ध वचनों से वही है जो यास्क - कृत निरुक्त का वेदों से । फिर भी निरुक्त की एक विशेष सार्थकता भी है, क्योंकि आठवीं शताब्दी ईसवी पूर्व ही वेदों की भाषा इतनी प्राचीन हो चुकी थी और ३०
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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