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________________ ( ४६१ ) वर्म तथा इनमें संयुक्त धर्म ‘पच्चयुप्पन्न' अर्थात् प्रत्ययों के कारण उत्पन्न होने वाले धर्म है। जिन धर्मों से इनकी उत्पत्ति होती है, वे है क्रमगः (१) पाँच विज्ञान-धातु और उनसे संयुक्त धर्म (२) मनो-धातु और उनमे संयुक्त धर्म (३) कुशल-धर्म (४) अकुशल-धर्म । अतः ये प्रत्यय-धर्म है। जिस प्रत्यय के कारण उनकी उत्पत्ति होती है, वह है अनन्नर-प्रत्यय । ५. समनन्तर-प्रत्यय (समनन्तर पच्चयो)---बिलकुल अनन्तर-प्रत्यय के समान । ६. सहजात-प्रत्यय--(सहजात पच्चयो)--जव कोई धर्म किन्ही अन्य धर्मों के साथ-साथ उत्पन्न होते हैं तो उनके बीच सहजात-प्रत्यय का सम्बन्ध होता है। उदाहरणतः, संज्ञा, वेदना, संस्कार और विज्ञान एक दूसरे के साथ सहजात-प्रत्यय के रूप में सम्बन्धित है, क्योंकि इनकी उत्पत्ति एक ही माथ होती है। ____७. अन्योन्य-प्रत्यय--(अञ्जमा पच्चयो)--एक दूसरे के आश्रय ने उत्पन्न होने वाले धर्म इस प्रत्यय के द्वारा आपस में सम्बन्धित होते है। यहां भी पूर्वोक्त उदाहरण ही दिया जा सकता है, क्योकि संजा, वेदना, संस्कार और विज्ञान आपस में एक दूसरे के आश्रय से ही उत्पन्न होते है। ८. निःश्रय-प्रत्यय-- (निस्सय पच्चयो)---निःश्रव का अर्थ है आधार । पृथ्वी वृक्ष का निःश्रय है । इसी प्रकार जिन धर्मों की उत्पत्ति जिन धर्मों के आधार पर होती है, उनके प्रति उनका निःश्रय-प्रत्यय का सम्बन्ध होता है। उदाहरणतः चक्षु-आयतन, श्रोत्र-आयतन, घ्राण-आयतन, जिह्वा-आयतन और काय-आयनन के आधार पर ही क्रमशः चक्षु-विज्ञान, श्रोत्र-विज्ञान, प्राण-विज्ञान, जिह्वाविज्ञान और काय-विज्ञान की उत्पत्ति होती है, अतः उनके बीच निःश्रय-प्रत्यय का सम्बन्ध है। ९. उपनिःश्रय-प्रत्यय--(उपनिस्सय पच्चयो)--उपनिःश्रय का अर्थ है बलवान् आधार । कुशल-धर्मों के दृढ़ आधार पूर्वगामी कुशल-धर्म हो होते है। अतः उनके बीच का सम्बन्ध उपनिःश्रय-प्रत्यय का है। अन्य अनेक उदाहरण भी मूल पालि में दिये हुए है। १०. पुरेजात-प्रत्यय--(पुरेजात पच्चयो)--जिस धर्म से किसी धर्म की उत्पत्ति पहले हुई हो तो उनके बीच पुरेजात-प्रत्यय का सम्बन्ध होता है ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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