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________________ ( ४५४ ) नियामक को नहीं तो नियम को तो अवश्य ही देखा है, यदि किसी ऋत-धारी वरुण को नहीं तो स्वयं ऋत को तो अवश्य देखा ही है। त्रसरेणु से भी सहस्रांश छोटे पदार्थों से लेकर महापिंड नीहारिकाओं तक और दृश्य इन्द्रिय-व्यापारों से लेकर सूक्ष्म अन्तश्चेतना की गहरी अनुभूतियों तक, इस सारे संसार-चक्र को तथागत ने नियम और ऋत से बँधा हुआ अवश्य देखा है। भगवान् को इस सत्य का ज्ञान सम्यक्-सम्बोधि-प्राप्ति के समय ही हुआ था, इसके लिए त्रिपिटक में प्रभूत प्रमाण हैं ।२ क्या है वह ऋत, क्या है वह नियम, जिसका ज्ञान भगवान बुद्ध ने सम्यक् सम्बोधि प्राप्त करने के समय ही किया? यही है वह गम्भीर प्रतीत्य समुत्पाद (पटिच्च समुप्पाद) अथवा प्रत्ययों से उत्पत्ति का नियम । यह कोई कोरा दार्शनिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि यह है सम्यक् सम्बुद्ध की प्रत्यक्षतम अनुभूति । यदि यह कोरा दार्शनिक सिद्धांत होता तो तथागत के लिए इसका उपदेश करना हो अनावश्यक होता। उस हालत में तथागत भी अफलार्दू, अरस्तू शंकर या नागार्जुन की समकोटि के ही दार्शनिक होते। वे 'करुणा के देव' किस प्रकार होते, जिस रूप में मानवता को उनका एकमात्र सहाग मिला है ? वास्तव में प्रतीत्य समत्पाद भगवान् की करुणा का ही ज्ञानमय परिणाम है। भगवान् ने अशेष जीव-जगत् को दुःख की चक्की में पिसते देखा । जहाँ बुद्धनेत्रों मे देखा, अखिल लोक में जरा, मरण, शोक, रोना-पीटना, दुःख, दौर्मनस्य और उपायामों का ही अखंड साम्राज्य देखा। जिज्ञासा हुई यह किमके कारण ? म्थल कारण अनेक थे जिन्हें साधारण आदमी आज भी देखते है और कुछ उन्हीं पर अधिक जोर भी देते हैं। किन्तु बुद्ध-नेत्रों से देखा गया कि जन्म ही इन दुःखों का मल कारण है। जन्म का कारण क्या? भव। भव का कारण क्या ? उपादान । उपादान का कारण क्या ? तृष्णा ! तृष्णा का कारण क्या ? वेदना ! वेदना का कारण क्या ? स्पर्श । स्पर्श का कारण क्या ? षडायतन ! पडायतन का कारण क्या ? नाम-रूप। नाम-रूप का कारण क्या ? विज्ञान । विज्ञान का कारण क्या ? संस्कार । संस्कार का कारण क्या ? अविद्या । "भिक्षुओ! अविद्या और तृष्णा से संचालित, भटकते-फिरते प्राणियों के आरम्भ २. देखिये विशेषतः विनय-पिटक--महावग्ग १, उदान, प्रथम (बोधि) वर्ग। ३. महानिदान-सुत्त (दोघ. २१२) में भगवान् ने स्वयं इसकी गम्भीरता का वर्णन सारिपुत्र के प्रति किया है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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