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________________ ( ४४९ ) सिद्धत्थिक ६२-६७, १६३-१६४ (सिद्धार्थक) वैतुल्यक १७३-७४, २१२ महाशून्यतावादी १६७-७११ वैतल्यक ऊपर के विवरण से स्पष्ट है कि वौद्ध धर्म के प्रारंभिक विकास को समझने के लिए 'कथावत्थु' की समीक्षाओं का कितना अधिक महत्त्व है। किन्तु ये समीक्षाएँ केवल एक सम्प्रदाय (स्थविरवाद) की हैं, यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए। जिस प्रकार 'कथावत्थु' में स्थविरवादी दृष्टिकोण से अन्य विरोधी सिद्धान्तों का खंडन किया गया है, उमी प्रकार अन्य सम्प्रदायों की परम्परा में शेष सम्प्रदायों (जिनमें स्थविरवादी भी सम्मिलित है) का खंडन किया गया है। उदाहरणतः वसुमित्र के 'अप्टादश-निकाय नास्त्र' २ में सर्वास्तिवादी दष्टिकोण से शेप १७ सम्प्रदायों का खंडन किया गया है। इसी प्रकार तिब्बती और चीनी अनुवादों में कुछ अन्य सम्प्रदायों की दृष्टियों से भी खंडन-मंडन मिलने है। चूंकि हमारे विषय में ये सीधे सम्बन्धित नहीं हैं, अतः इनके तुलनात्मक अध्ययन में पड़ना हमारे लिए अप्रासंगिक होगा। कथावत्थु' की दृष्टि से इतना कह देना ही आवश्यक जान पड़ता है कि अन्य बौद्ध सम्प्रदायों की परम्पराओं में प्राप्त सिद्धान्तों के विवरणों से उसके विवरणों की विभिन्नता नहीं है। केवल समालोचना-दृष्टि का भेद अवश्य है, जो सम्प्रदाय-विभेद के कारण आवश्यक हो गया है। जहाँ तक आपेक्षिक प्रामाण्य का सवाल है निश्चय ही 'कथावत्थु' का परम्परा प्राचीन है और उसी का अनुवर्तन बाद में 'दीपवंस' और 'महावंस' में भी मिलता है । वसुमित्र और भव्य के वर्णन अपेक्षाकृत अर्वाचीन हैं। संस्कृत बौद्ध धर्म की परम्परा का उसके मूल स्रोत से कई बार ऐतिहासिक उलट-पुलटों के कारण विच्छेद भी हो १. ज्ञानातिलोक : गाइड शू दि अभिधम्म-पिटक, पृष्ठ ३८ २. इस ग्रन्थ का मूल संस्कृत उपलब्ध नहीं है । केवल चीनी अनुवाद मिलता है, जिसका अग्रेजी अनुवाद जापानी विद्वान् प्रो० मसूदा ने किया है। वसुमित्र द्वारा दिये गये कुछ सम्प्रदायों के परिचय के लिये देखिये बुद्धिस्टिक स्टडीज, पृष्ठ ८२८-३१ । ३. देखिये जर्नल ऑव रॉयल एशियाटिक सोसायटी, १९१०, पृष्ठ ४१३ २९
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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