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________________ ( ४४५ ) साधारण आदमी (पृथग्जन) भी प्राप्त कर सके ? नहीं हैं, ऐसा महीशासक और हेतुवादी भिक्षु कहते थे। बीसवाँ अध्याय १९०. क्या बिना जान-बूझ कर किये हुए पितृ-वध आदि अपराधों के कारण भी नरक में जन्म लेना पड़ता है ? उत्तरापथक ऐसा मानते थे। १९१. क्या साधारण सांसारिक मनुष्य (पृथग्जन) को सम्यक् ज्ञान नहीं हो सकता? नहीं हो सकता, कहते थे हेतुवादी। १९२. क्या नरक में फाँसी लगाने वाले या चौकीदार नहीं हैं। 'नही है' कहते थे अन्धक। १९३. क्या देवताओं के पशु भी होते है ? अन्धकों के अनुसार होते थे ! १९४. क्या आर्य अष्टांगिक मार्ग वास्तव में पाँच अंगों वाला ही है ? महीशासक ऐसा ही मानते थे। सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्मान्त और सम्यक् आजीव को वे मानसिक दशा न मान कर उनका अन्तर्भाव केवल सम्यक् व्यायाम में कर देते थे। १९५. क्या चतुरार्य सत्य-सम्बन्धी १२ प्रकार के ज्ञान लोकोत्तर है ? पूर्वशैलीय भिक्षु उन्हें ऐसा ही मानते थे। इक्कीसवाँ अध्याय १९६. क्या बुद्ध-उपदेशों में कोई संस्कार किया गया है ? क्या उनमें फिर संस्कार किया जा सकता है ? इन दोनों बातों की सम्भावना उत्तरापथक भिक्षु मानते थे। स्थविरवादियों ने दोनों बातों का विरोध किया है। बुद्ध की शिक्षाओं का संस्कार या सुधार सम्भव नहीं है। १९७. क्या सांसारिक मनुष्य की पहुँच एक ही क्षण में काम -लोक, रूप-लोक और अ-रूप-लोक की वस्तुओं में हो सकती है ? हो सकती है, ऐसा कुछ विरोधी सम्प्रदाय के लोग मानते थे, किन्तु उनके नाम का निर्देश अट्ठकथा में नहीं किया गया है। १९८. क्या बिना कुछ संयोजनों का विनाश किएं भी अर्हत्त्व प्राप्ति हो सकती है ? महासांघिकों का ऐसा ही विश्वास था। १९९. क्या बुद्ध और उनके कुछ शिष्यों को प्रत्येक वस्तु के सम्बन्धमे योग की शक्तियाँ प्राप्त हुई रहती हैं। अन्धकों का विश्वास ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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