SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 449
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४२८ ) चीज को इस प्रकार अनधिकृत रूप से मिलाने का प्रयत्न नहीं करते । इसी प्रकार यदि मनीषी महापंडित भी इस बात की सम्यक् अनुभूति कर लेते कि 'महाशून्यवादी' वेतुल्यकों (वैपुल्यकों) की स्थविरवादियों ने 'कथावत्थु' में क्या खबर ली है, तो वे नागार्जुन आदि उत्तरकालीन वौद्ध दार्शनिकों को, जिन्होंने निषेधात्मक दिशा में ही अधिक पदार्पण किया है, वुद्ध-मन्तव्यों के एकमात्र सच्चे व्याख्याता होने का श्रेय प्रदान नहीं करते । बद्ध-मत सभी अतियों से बाहर जाता है, सभी मतवादों मे ऊपर उठता है। आत्मवाद और अनात्मवाद, ईश्वरवाद और अनीश्वरवाद, भौतिकवाद और विज्ञानवाद, शाश्वतवाद और अशाश्वतवाद सभी इन अतियों और मतवादों के ही स्वरूप है। बुद्ध की दार्शनिक परिस्थिति संबंधी हमारी बहुत सी शंकाओं का निर्म लन स्वयं बुद्ध-वचनों के बाद 'कथावत्थु' में बड़े अच्छे ढंग से होता है। बाद में मिलिन्दपञ्ह (प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व) में भी इस प्रकार का प्रयत्न किया गया है, किन्तु उसका महत्व 'कथावत्थु' के बाद ही है। अब हम कथावत्थु में निरुक्त विषय-वस्तु का संक्षेप मे दिग्दर्शन करेंगे । कथावत्थु में निराकृत सिद्धान्तों की सूची पहला अध्याय १. क्या जीव, सत्व या आत्मा की परमार्थ-सत्ता है ? वज्जिपुत्तक और सम्मितिय भिक्षुओं का विश्वास था कि 'है' । स्थविरवादी दृष्टिकोण से इसका विस्तृत खंडन किया गया है । २. क्या अर्हत्व की अवस्था मे अर्हत् का पतन संभव है ? सम्मितिय वज्जिपुनक, सब्बन्थिवादी और कुछ महासंघिक भिक्षुओं का विश्वास था कि यह संभव है। स्थविरवादियों ने स्रोत आपन्न, सकृदागामी और अनागामी के विषय में तो यह माना है कि वे अपनी-अपनी अवस्थाओं में पतित होकर फिर सांमारिक वन मकते है, किन्तु अर्हत् का पतन तो असंभव है। २. क्या देवताओं में ब्रह्मचर्य की प्राप्ति संभव है ? सम्मितिय भिक्षु कहते थे कि 'नहीं'। स्थविग्वादी दृष्टिकोण से कहा गया है कि सम्मितिय भिक्षुओं
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy