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________________ १५-पटिसम्भिदा-विभंग (चार प्रतिसंविदों का विवरण) चार प्रतिसंविदों या विश्लेपणात्मक ज्ञानों का इस विभंग में वर्णन किया गया है, यथा (१) अर्थ-सम्बन्धी ज्ञान (अत्थ पटिसम्भिदा) (1) धर्म-मम्बन्धी जान (धम्म पटिमम्भिदा) (३) शब्द-व्याख्या-मम्बन्धी ज्ञान (निनि पटिअम्भिदा) और (८) जान-दर्शन-सम्बन्धी ज्ञान (पटिभान पटिमम्भिदा) । १६-आण-विभंग (नाना प्रकार के ज्ञानों का विवरण) इम विभंग में नाना प्रकार के ज्ञानों का विवरण है, यथा लौकिक ज्ञान, अलौकिक ज्ञान, आदि, आदि। इस विभंग का तीन प्रकार का ज्ञान-विवरण विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है । प्रजा की यहाँ तीन क्रमिक अवस्थाएँ बतलायी गयी हैं, यथा श्रुतमयी प्रज्ञा (सुतमया पञ्जा) चिन्ता-मयी प्रजा (चिन्तामयापञ्जा) और भावना-मयी प्रज्ञा (भावनामया पा )। शास्त्रादि ग्रन्थों के श्रवण या पठनादि मे उत्पन्न ज्ञान 'श्रुतमयी प्रज्ञा' है । वह सुना हुआ है, स्वयं का अनुभव या चिन्तन उसमें नहीं है । इसके बाद चिन्ता-मयी प्रजा है, जिसमें अपनी बुद्धि का चिन्तन सम्मिलित है। किन्तु इससे भी ऊंचा एक ज्ञान है, जिसका नाम है 'भावना-मयो प्रजा'। यह प्रज्ञा न केवल शास्त्रीय या बौद्धिक आधारों पर प्रतिष्ठित है, बल्कि इसमें सम्पूर्ण सदाचार-समूह के पालन से उत्पन्न चिन की उस समाधि को गम्भीरता भी संनिहित है, जो कुशल चित्त से ही प्राप्त की जा सकती है । यह तीन प्रकार का ज्ञान-वर्गीकरण निश्चय ही बड़ा मार्मिक है । १७-खुद्दक-वत्थु-विभंग (छोटी-छोटी बातों का विवरण) इस विभंग में आम्रवों (चित्त-मलों) आदि के अनेक प्रकारों का वर्णन किया गया है। १८-धम्म-हदय-विभंग (धर्म के हृदय का विवरण) अब तक के विभंगों ने जो कुछ वर्णन किया जा चुका है. उसी का प्रश्नोत्तर
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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