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________________ ( २४ ) जाने तक का विरोध किया तो फिर वे किसी साधारण बोल चाल की भाषा में उन्हें रक्खे जाने का किस प्रकार आदेश दे सकते थे? उस दशा में तो उनके मौलिक अर्थों और प्रभाव में ही काफी अन्तर हो जाता।' “अतः निःसन्देह भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेश मगध-देश की टकसाली भाषा में ही दिये और उसी में उनके शिष्यों ने उन्हें सीखा और फिर उपदेश किया।"२ भिक्षु सिद्धार्थ के इस मन्तव्य से किसी को विरोध नहीं हो सकता। चूंकि भगवान् बुद्ध ने मध्य-मंडल की सामान्य सभ्य-भाषा में ही अपने उपदेश दिये और उसी के विभिन्न स्वरूपों में उनके शिष्यों ने उन्हें सीखा, अतः आज हम कहना चाहें तो कह ही सकते हैं कि मागधी भाषा ही भगवान् बुद्ध के उपदेशों का माध्यम थी और उसी में उनके शिष्य उन्हें सीखते और उपदेश करते थे। इस दृष्टि से बुद्धघोष, गायगर और भिक्षु सिद्धार्थ के अर्थ ठीक हैं । किन्तु यदि उनके अर्थों से हम यह समझें कि स्वयं भगवान् बुद्ध और उनके शिष्यों को भगवान् बुद्ध की उपर्युक्त अनुज्ञा से वही अर्थ अभिप्रेत था जो बुद्धघोष, गायगर और भिक्षु सिद्धार्थ ने उसे दिया है, तो यह विलकुल गलत है। वास्तव में, हम बुद्ध की उपयुक्त अनुज्ञा की व्याख्या करने में बुद्धघोष या गायगर की अपेक्षा उस अनुज्ञा के ही पूर्वापर प्रसंग और बुद्ध की भावना से भी, जैसी वह अन्यत्र प्रस्फुटित हुई है, अधिक सहायता लेने के पक्षपाती हैं। विन्टरनित्ज ने कुछ स्पष्टतापूर्वक यह दिखाया है कि 'सकाय निरुत्तिया' का सम्बन्ध 'भिक्खवे' के साथ लगाने के लिये उसके साथ 'वो' शब्द का आना अनिवार्यत: आवश्यक नहीं है जैसा कि गायगर ने आग्रह किया है। उसे प्रसंग-वश भी समझा जा सकता है।३ डा० विमलाचरण लाहा ने पालि के मागधी आधार को स्वीकार नहीं किया है,अतः उन्होंने कुछ विस्तार से गायगर के मत का प्रतिवाद किया है।४ कीथ ने भी, जो १. बद्धिस्टिक स्टडीज़ (डा० लाहा द्वारा सम्पादित) पृष्ठ ६४८ 2. “There can be no doubt as to the fact that the Buddha preached his doctrine in the standard vernacular of the Magadha country and his disciples studied and taught it in that very language." बुद्धिस्टिक स्टडीज, पृष्ठ ६४९ ३. इन्डियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ६०२ (परिशिष्ट दूसरा) ४, पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ ११-१६ (भूमिका)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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