SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३९८ ) विषय-वस्तु का सुतल आधार दिखलाया गया है, अर्थात् जिस विषय का वर्णन करना है वह किस सीमा तक या किस स्वरूप में सुत्तपिटक में पाया जाता है, इसका निर्देश किया गया है । अभिधम्म - भाजनिय में उसकी अभिधम्म मा उसके आधार-स्वरूप ‘मातिका' के अनुसार व्याख्या है । 'पञ्ह पुच्छकं' में 'द्विक' 'त्रिक' आदि शीर्षकों के रूप में प्रश्नोत्तर हैं, जिनमें संपूर्ण निरूपित विषय का सिंहावलोकन एवं संक्षेप है । अब हम प्रत्येक विभंग की विषय-वस्तु का संक्षिप्त विवरण देंगे । १ - खन्ध - विभंग · ( पाँच स्कन्धों का विवरण ) वेदना, जिसे हम व्यक्तिगत सत्ता ( जीवात्मा, पुद्गल) कहते हैं, वह रूप, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान की समष्टि के सिवा और कुछ नहीं है, ऐसी बौद्ध दर्शन की मान्यता है । रूप स्वयं संपूर्ण भौतिक विकारों और अवस्थाओं की समष्टि है | वेदना संपूर्ण संवेदनों की समष्टि है । संज्ञा संपूर्ण संजानन या जानने की क्रिया की, वस्तु और इन्द्रिय के संयोग से उत्पन्न चित्त की उस अवस्था की, जिसमें उसे वस्तु की सत्ता की सूचना मिलती है, दूसरे शब्दों में समग्र प्रत्यक्षों की, समष्टि है । इसी प्रकार संस्कार बाह्य और आन्तरिक स्पर्शो (इन्द्रिय-विषय-संनिकर्षो) के कारण से उत्पन्न समग्र मानसिक संस्करणों की और विज्ञान चक्षुरादि इन्द्रियों के, तत्संबंधी रूपादि विषयों या आलम्बनों-आयतनों के साथ संयुक्त होने पर उत्पन्न, चक्षुविज्ञान आदि विज्ञानों पर आधारित समग्र चित्त-भेदों की समष्टि है । रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान का ही सामूहिक नाम 'पंच- स्कन्ध' है । इन पाँचों स्कन्धों में ही संपूर्ण नाम-रूप-मय जगत् के मूल तत्व निहित है, ऐसा बौद्ध दर्शन मानता है । 'पञ्च स्कन्ध' के विषय को उपन्यस्त करते हुए विभंग के आरंभ में ही कहा गया है- -- पञ्चक्खन्धा : रूपक्खन्धो, वेदनाक्खन्धो, सञ्ञाक्ग्वन्धो, संखारक्खन्धो, विञ्चाणक्खन्धो । इन पञ्चस्कन्धों का सुत्तन्त आधार दिखाने हुए सुनन्त-भाजनिय में उस बुद्ध वचन को उद्धृत किया गया है, जिसमें इन पाँच स्कन्धों में से प्रत्येक के विषय में यह साधारण कथन किया गया
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy