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________________ ३।४।१) में प्रयुक्त किया गया है । “भिक्षुओ ! तुम्हें भद्देकरत्त (भद्रकरक्त) के उद्देश (नाम-कथन) और विभंग (विभाग) का उपदेश करता हूँ, उसे सुनो, अच्छी तरह मन में करो ।" विभंग में धम्मसंगणि के ही बृहद् विश्लेषण को वर्ग-बद्ध किया गया है, अतः यह उसका पूरक ग्रन्थ ही माना जा सकता है । धम्मसंगणि में, जैसा हम अभी देख चुके है, धम्मों का अनेक द्विकों और त्रिकों में विश्लेपण किया गया है और यही उसका प्रधान विषय है । किन्तु धम्मों के स्वरूप को स्पष्टरूप से समझाने के लिए वहाँ इस प्रकार के भी प्रश्न किये गये हैं, जैसे किन-किन धम्मों में कौन कौन से स्कन्ध, आयतन, धातु, इन्द्रिय आदि मंनिविष्ट है। इस प्रकार के प्रश्नों का उद्देश्य वहाँ स्कन्ध आयतन और धातु आदि के संबंध के साथ धम्मों के स्वरूप को समझाना ही है, न कि स्वयं स्कन्ध, आयतन और धातु आदि के स्वरूप का विनिश्चय करना । यह दूसरा काम विभंग में किया गया है। धम्मसंगणि का प्रधान विषय धम्मों का विश्लेपण मात्र कर देना है, उनका स्कन्ध, आयतन, और धातु आदि के रूप में मंश्लिष्ट वर्गीकरण करना विभंग का विषय है । यद्यपि धम्मसंगणि ने धम्मों का विश्लेषण करने के बाद अपूर्ण ढंग से यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि उनमें कौन कौन से स्कन्ध, आयतन और धातु आदि संनिविष्ट हैं, किन्तु विभंग ने यहीं से उसके सूत्र को पकड़कर उसके सारे गन्तव्य मार्ग को ही जैसे उल्टा मोड़ दिया है । विभंग में इन स्कन्ध, आयतन और धातु आदि को ही प्रस्थान विन्दु मानकर यह दिखाया गया है कि स्वयं इनमें कौन कौन मे धम्म संनिविष्ट हैं । अतः वस्तु पूरक होते हुए भी वस्तु का विन्यास यहाँ धम्मसंगणि के ठीक विपरीत है। यहाँ यह कह देना भी अप्रासंगिक न होगा कि धम्मसंगणि की १०० द्विकों और २२ त्रिकों वाली वर्गीकरण की प्रणाली को भी, जिसका निर्देश उसकी 'मातिका' और निर्वाह सारे ग्रन्थ में हुआ है. विभंग ने आवश्यकतानुसार ज्यों का त्यों ले लिया है। अतः सोसायटी, लंदन के लिए किया है, जिसे उक्त सोसायटी ने सन् १९०४ ई० में प्रकाशित कियाहै। इस ग्रन्थ के बरमी, सिंहली और स्यामी संस्करण उपलब्ध है। सिंहली लिपि में हेवावितरणे-संस्करण अधिक ध्यान देने योग्य है। हिन्दी में कोई संस्करण या अनुवाद उपलब्ध नहीं ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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