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________________ ( ३९० ) अनभिज्जा ( अद्रोह ) होति (३५) अभ्यापादो (अ-वैर ) होति ( ३६ ) सम्मादि होति । ७. (३७) हिरि (ह्रो - नैतिक लज्जा ) होति (३८) ओतप्पं ( पाप भय) होति ८. (३९) काय-पसद्धि ( काय - प्रश्रब्धि- काया की शान्ति ) होति । (४०) चित्त-पस्मद्धि होति ( ४१ ) काय - लहुता ( काया का हल्कापन ) होति (४२) चित्त-लहुना होति (४३) काय - मुदिता ( काया की प्रफुल्लता ) होति (४४) चित्त-मुदिता होति (४५) काय - कम्मता ( काया के कर्मों का ज्ञान) होति । (४६) चित्त कम्मता होति (४९) कायज्जुकता ( काया की सरलता ) होति (५०) चित्तुज्जुकता होति । ९. (५१) सति होति (५२) सम्पणं ( सम्प्रज्ञान ) होति । १०. (५३) समथो ( शमथ, शान्ति ) होति (५४) विपस्सना ( विपश्यनाविदर्शना - अन्तर्ज्ञान) होति । ११. (५५) पग्गहो ( निश्चय ) होति (५६) अविक्खेपो ( चित्त - शान्ति का भंग न होना) होति । उपर्युक्त ५६ चित्त-अवस्थाओं में बहुत पुनरुक्ति की गई है । २९ और १७; ५ और १६; ६ और २०; १० १४, २३२७, ५३ और ५६; ११ और १४; १२, २१, २५ और ५५, १३, २२, २६ और ५१, १५, १९, २८, ३३, ३६, ५२ और ५४; २९ और ३७; ३१ और ३४ तथा ३२ और ३५ संख्याओं की अवस्थाएँ समान ही हैं । अतः समान अवस्थाओं को निकाल देने पर शेप ३१ रह जाती हैं। 'धम्मसंगणि' में इस प्रकार के विस्तार बहुत अधिक हैं और उनकी संगति केवल विभिन्न दृष्टियों से किये गये वर्गीकरणों के आधार पर ही लगाई जा सकती है । कुशल- चित्त के प्रथम भेद के अलावा उसके शेष २० भेदों को महगत-अवस्थाओं की भी गणना उसी के आधार पर की गई हैं । यही पद्धति बाद में कामावचर भूमि के अकुशल-चित्त के १२ भेदों के विषय में तथा उसके बाद विपाक चित्त की चारों भूमियों के ३६ भेदों के विषय में और अन्त में क्रिया-चित्त की तीन भूमियों ( कामावचर, रूपावचर, और अरूपावचर) के २० भेदों के विषय में प्रयुक्त की गई है। इन सबका विस्तृत विवरण अभिधम्म के पुरे दर्शन को समझने के लिये आवश्यक है, किन्तु पालि साहित्य के इतिहास
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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