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________________ ( ३८८ ) । कहते हैं ३३. सम्यक् वाणी (सम्मावाचा-वाचिक दुश्चरितों से विरति) तीनों ३४. सम्यक् कर्मान्त (सम्माकम्मन्तो-कायिकदुश्चरितोंसेविरति) ३५. सम्यक् आजीव (सम्मा आजीवो-जीविका सबंधी दुश्चरितों से विरति) ३६. करुणा ) इन दोनों को अ-परिमाण (परिमाण-रहित) कहते हैं ३७ मुदिता, क्योंकि इन्हें किसी हद तक बढ़ाया जा सकता है । ३८. प्रज्ञा-इन्द्रिय (पचिन्द्रियं—अमोह) ३. १४ अकुशल चेतसिक जो सामान्यतः अकुशल-चित्तों में पाये जाते हैं, जिनमें अ. ४ मूल-भूत अकुशल चेतसिक जो सभी अकुशल-चित्तों में अनिवार्यतः पाये जाते हैं । यथा ३९. मोह (मोहो) ४०. अ-ह्रो (अहिरीक-दुश्चरितों से लज्जा न करना) ४१. अन्-अवत्रपा (अनोत्तप्पं--कुकर्मों से त्रास न मानना) ४२. उद्धतता (उद्धच्च-चंचलता) आ. १० अकुशल-चेतसिक जो किन्हीं अकुशल-चित्तों में पाये जाते है, किन्हीं में नहीं, यथा ४३. द्वेष (दोसो) ४४. ईर्ष्या (इस्सा) ४५. मात्सर्य (मच्छरियं-कृपणता) ४६. कौकृत्य (कुक्कुच्चं-दुश्चरित के बाद सन्ताप) ४७. लोभ (लोभो) ४८. मिथ्याधारणा (दिट्ठि-दृष्टि) ४९. मान (मानो-गर्व) ५०. कायिक-आलस्य (थीनं-स्त्यान) ५१. मानसिक आलस्य (मिद्धं, मृद्ध) ५२. विचिकित्सा (विचिकिच्छा-सन्देह) चित्त के ८९ विभेदों में से प्रत्येक में कौन कौन से चेतसिक उपस्थित रहते हैं, इसका विस्तृत विवेचन, अनेक पुनरुक्तियों के साथ, 'धम्मसंगणि' में किया गया
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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