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________________ ( ३६७ ) ( ७ - योग - वर्ग ) ३८-४३ -- ऊपर के समान ही । केवल 'चित्त की गाँठ' की जगह 'योग' ( आसक्ति ) का प्रयोग है । (योग भी चार माने गये हैं, यथा काम-योग, भव-योग,. (आत्म-) दृष्टि-योग, एवं अविद्या - योग ) ( ८ - - नीवरण - वर्ग ) ४४. अ. जो ध्यान के विघ्न हैं। आ. जो ध्यान के विघ्न नहीं हैं। ४५. अ. जो भविष्य में ध्यान के विघ्नों को पैदा करने वाले हैं आ. जो भविष्य में ध्यान के विघ्नों को ―― -- (नीवरणा) - (नो नीवरणा) - (नीवरणिया ) पैदा करने वाले नहीं हैं -- ( अनीवरणिया ) ४६. अ. जो ध्यान के विघ्नों के सहचर हैं - (नीवरणसम्पयुत्ता) आ. जो ध्यान के विघ्नों के सहचर नहीं हैं -- (नीवरणविप्पयुत्ता) ४७. अ. जो स्वयं ध्यान के विघ्न हैं और ध्यान के विघ्नों को पैदा करने वाले भी हैं -- (नीवरणा चेव नीवराणेया च ) आ. जो स्वयं ध्यान के विघ्न नहीं हैं किन्तु जो ध्यान के विघ्नों को पैदा करने वाले है-(नीवरणिया चेव नो च नीवरणा ) ४८. अ. जो स्वयं ध्यान के विघ्न हैं और ध्यान के विघ्नों के सहचर भी हैं -- (नीवरणा चेव नीवरण - सम्पयुक्त्ता च ) आ. जो स्वयं ध्यान के विघ्न नहीं है किन्तु ध्यान के विघ्नों के सहचर है- (नीवरणसम्पयुत्ता चेव नो च नीवरणा) ४९. अ. जो स्वयं ध्यान के विघ्नों के सहकर नहीं हैं किन्तु उन्हें पैदा करने वाले हैं—- (नीवरणविप्पयुत्ता नीवरणिया ) आ. जो स्वयं ध्यान के विघ्नों के सहचर भी नही हैं और न उन्हें पैदा करने वाले ही हैं- (नीवरणविप्पयुक्त्ता अनीवरणिया ) ५०. अ. जो मिथ्या धारणायें ( ९ - - परामर्श - वर्ग ) हैं -- ( परामासा ) आ. जो मिथ्या धारणाएँ नहीं है -- (नो परामासा )
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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