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________________ परिनिर्वाण से ३०० वर्ष बाद माना जाता है। अत: ये आर्य कात्यायनीपूत्र के समकालीन थे, ऐसा कहा जाता है। प्रकरण-पाद में आठ वर्ग हैं, जिनमें धर्म, ज्ञान, आयतन आदि का विवेचन है। यद्यपि 'प्रकरण-पाद' के नाम का साम्य 'कथावत्थुप्पकरण' से है, किन्तु दोनों की विषय वस्तु या शैली में कोई समानता नहीं है। विषय-वस्तु की दृष्टि से डा० लाहा ने इस ग्रन्थ की तुलना 'विभंग' से की है।' किन्तु विभंग' की समानता धर्नस्कन्ध से अधिक है. यह हम अभी देखेंगे। 'प्रकरण-पाद' का पहला चीनी अनुवाद गुणभद्र तथा बुद्धयश ने ४३५-४३ ई० में किया। उसके बाद एक दूसरा अनुवाद ६५९ ई० में यआन्-चआङ के द्वारा किया गया। (३) विज्ञान-काय-पाद स्थविर देवशर्मा की रचना कही जाती है। एक परम्परा के अनुमार इस ग्रन्य की रचना बद-परिनिर्वाण के १०० वर्ष वाद और एक दूसरी परम्परा के अनुसार ३०० वर्ष बाद हुई। दूसरी परम्परा ही अधिक ठोक हो सकती है । इन ग्रन्थ में : स्कन्ध हैं, जिनमें पुद्गल, हेतु-प्रत्यय, आलम्बन-प्रत्यय आदि विषयों के विवेचन है। विषय-वस्तु अभिधम्म पिटक के 'पुग्गलपाति' और 'पट्टान' में जहाँ-तहां बहत कुछ मिलती-जुलती है, फिर भी किसी एक विशिष्ट ग्रन्थ से नमकी तुलना नहीं की जा सकती। इस ग्रन्थ का चीनी अनुवाद यूआन्-चुआङ ने ६४९ ई० में किया । (४) धर्मस्कन्धपाद सर्वास्तिवादी अभिधर्म- पिटक का जान-प्रस्थान-शास्त्र के बाद सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इनके कुछ अंशों को संगीतिपर्याय-पाद में भी प्रमाण-स्वरूप उद्धृत किया गया है। चीनी परम्पर" के अनुसार धर्मस्कन्ध-पाद आर्य महामौद्गल्यायन की रचनाहै। किन्तु यगोमित्र केमतानसार यह आर्य शारिपुत्र की रचना है । यह निश्चित है कि ये आर्य शारिपुत्र और महामोद्गल्यायन वट्ट के इम नाम के प्रधान शिष्य नहीं हो मकने । इस ग्रन्थ में २१ अध्याय है जिनमें चार आर्य-मत्य, समाधि, बोध्यंग, इन्द्रिय, आयतन, म्कन्ध, प्रतीत्य समत्पाद आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस ग्रन्थ का चीनी अनवाद ६५९ ई० में यूआन्-चआङ ने किया। इस ग्रन्थ की समता विषयवस्तु की दष्टि मे 'विभंग' से सर्वाधिक है, यह निष्कर्ष महास्थविर ज्ञानातिलोक ने दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद निकाला है ।२ विभंग में १८ अध्याय है, धर्मम्कन्ध में २१ है। इनमें १४ एक दूसरे के बिलकुल समान है। यह ममानता इस प्रकार है-- १. हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ ३४० २. गाइड शू दि अभिधम्म-पिटक, पृष्ठ २ (भूमिका)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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