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________________ ( ३४६ ) अभिधम्म-पिटक में धम्मों के विश्लेषण और विवेचन किये गये हैं और इतनी अधिक अवस्थाओं पर उसके संक्षिप्त और विस्तृत विवेचन निर्भर करते हैं कि एक दो उदाहरणों से हम किन्हीं दो ग्रन्थों की पूर्वापरता का कोई निश्चित निर्णय नहीं कर सकते । धम्मसंगणि वास्तव में संपूर्ण अभिधम्म-पिटक का आधारभूत ग्रन्थ है और विषय-वस्तु की दृष्टि से उसी पर आधारित 'विभंग' है । 'विभंग' 'धम्मसंगणि' का पूरक है और स्वयं धातुकथा' के लिए आधारस्वरूप है।' इस प्रकार 'धम्मसंगणि और धातुकथा के बीच वह मध्यस्थता करता है। 'यमक' और पट्ठान के विषय में जो कुछ पहले कहा जा चुका है, वह ठीक है। अतः हमारे प्रस्तुत अध्ययन के अनुसार अभिधम्म-पिटक के ग्रन्थों का अधिक ठीक काल-क्रम यह होना चाहिए--पुग्गलपञत्ति, धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, यमक, पट्ठान, और कथावत्थ । इसे यों भी दिखाया जा सकता है १. पुग्गलपत्ति २. धम्मसंगणि ३. विभंग । अ. धातुकथा २ आ. यमक ( इ. पट्ठान ४. कथावत्थ अभिधम्म पिटक का विषय ___ ऊपर अभिधम्म-पिटक के ग्रन्थों के काल-क्रम के विषय में जो विवेचन किया गया है, उससे उसकी विषय-वस्तु पर भी काफी प्रकाश पड़ता है। अभिधम्म-पिटक के विषय में सुत्त-पिटक की अपेक्षा कुछ नवीनता नहीं है। जैसा डा० रायस डेविड्स ने कहा है, अभिधम्म-पिटक सुत्त-पिटक का ही परिशिष्ट है । २ आचार्य बुद्धघोष ने उसे 'धम्म' का अतिरेक या अतिरिक्त रूप कहा है। उसका भी यही अर्थ है । सुत्त-पिटक में निहित बुद्ध-मन्तव्यों को ही अभिधम्म-पिटक में अधिक सूक्ष्म विस्तार के साथ समझाया गया है । पारिभाषिक शब्दावली कहीं कुछ नई १. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ १७ २. अमेरिकन लैक्चर्स ऑन बुद्धिज्म : इट्स हिस्ट्री एंड लिटरेचर, पृष्ठ ६२ ३. देखिये पृष्ठ ३३४, पद संकेत २
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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