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________________ ( ३४४ ) गणन जिसमें 'कथावत्थु' को सातवें स्थान के बजाय पाँचवाँ स्थान प्राप्त है, कालक्रम की दृष्टि से ठीक नहीं हो सकता, ऐसा तो अन्ततः मानना ही पड़ेगा। अतः 'कथावत्यु को अभिधम्म-पिटक का अन्तिम ग्रंथ मानना ठीक ही जान पड़ता है। इसी प्रकार विषय और शैली दोनों की ही दृष्टि से 'पुग्गलपत्ति ' को भी कालक्रमानुसार प्रथम ग्रंथ माना जा सकता है। यहाँ तक डा० लाहा के निष्कर्ष ठीक जान-पड़ते हैं। किन्तु 'विभंग' को 'धम्मसंगणि' से पूर्व की रचना मानना युक्तियुक्त नहीं जान पड़ता । यहाँ डा० लाहा ने विषय-वस्तु की अपेक्षा शैली को अधिक महत्त्वपूर्ण मानकर यह निष्कर्ष निकाल डाला है। विशेषतः 'विभंग' को 'धम्मसंगणि मे पूर्व की रचना मानने के लिये उन्होंने दो कारण दिये हैं (१) विभंग के प्रत्येक भाग में सुत्नन्तभाजनिय (सुत्तन्त-भाग) और अभिधम्मभाजनिय (अभि• धम्म-भाग) दो स्पष्ट भाग है, जिनमें सुत्तन्तभाजनिय पर ही आधारित अभिधम्मभाजनिय है। इससे डा. लाहा ने यह निष्कर्ष निकाला है कि 'विभंग' अभिधम्म-पिटक के विकास की उस अवस्था का सूचक है, जिसमें सुत्तन्त और अभिधम्म का भेद सनिश्चित नहीं हआ था। इसके विपरीत 'धम्मसंगणि' में अभिधम्म-शैली का पूरा अनुसरण मिलता है। अतः 'धम्मसंगणि' 'विभंग' से बाद की रचना ही हो सकती है । (२) उद्देस (साधारण कथन) के बाद निद्देस (शब्दों के अर्थों का विस्तृत विवेचन) देने की अभिधम्म की प्रणाली है। विभंग के 'रूपक्खन्धविभंग' में रूप' कामात्र उद्देस' ही मिलता है। उसका निद्देस सिर्फ धम्मसंगणि में ही मिलता हुँ । अतः 'धम्मसंगणि' 'विभंग' के बाद की ही रचना होनी चाहिये ।। डा० लाहा ने यहाँ समष्टि रूप से दोनों ग्रंथों की विषय-वस्तु पर विचार नहीं किया है। केवल शैली की दृष्टि से विचार किया है और वह भी अपूर्ण है । जहाँ तक अध्यायों के ‘सुत्त-विभाग' और 'अभिधम्म-विभाग' इन दो विभागों का सम्बन्ध है, वे तो विभंग के समान धम्मसंगणि में भी मिलते है । अतः इस दृष्टि से दोनों में भेद करना अनचित है। विषय के स्वरूप की दृष्टि से शैली में भी अन्तर हो सकता है । धम्मसंगणि का धम्म-विश्लेषण विभंग में प्राप्त उसके वर्गीकृत स्वरूप का पूर्वगामी ही हो सकता है । फिर इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण वात तो विषय का पूर्वापर संबंध १. हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ २४-२५ २. देखिये स्वयं विमलाचरण लाहा : हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ ३०६
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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