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________________ ( १५ ) प्रदेश के मध्य और पच्छिमी भाग को पालि का उद्गम स्थान बताने के अतिरिक्त एक और विचित्र बात कही है। उन्होंने सामान्यतः पालि समझे जाने वाली भाषा ( अर्थात् त्रिपिटक और उसके उपजीवी साहित्य की भाषा) के लिये तो 'साहित्यिक पालि' शब्द का प्रयोग किया है और 'पालि' शब्द से उन्होंने बुद्धकालीन भारत में बोले जाने वाली अन्य सब आर्य भाषाओं को अभिप्रेत करना चाहा है । फ्रैंक का यह पारिभाषिक शब्द निर्माण भ्रमात्मक ही सिद्ध हुआ है । जिन आर्यभाषाओं को उन्होंने 'पालि' कहा है, उनके लिए भारतीय साहित्य में प्राकृत भाषाओं का नाम रूढ़ है और आज भी उनका यही नाम प्रचलित है । अत: उसी का प्रयोग करना अधिक उचित जान पड़ता है । त्रिपिटक की भाषा के लिए केवल 'पालि' नाम पर्याप्त है । उसके साथ 'साहित्यिक' लगाने से भ्रम पैदा होने की आशंका हो जाती है । स्टैन कोनो का मत पैशाची प्राकृत को उज्जयिनी प्रदेश की बोली बतलाता है और इस प्रकार भाषातत्वविदों के सामने एक नई समस्या खड़ी कर देता है । वास्तव में उनका यह मत विद्वानों को कभी ग्राहय नहीं हुआ है और पैशाची को केकय और पूर्वी गान्धार की बोली मानना ही सब प्रकार ऐतिहासिक और भाषावैज्ञानिक तथ्यों से संगत है । ओल्डनबर्ग और ई० मुलर के मत प्रधानतः कल्पनाप्रसूत हैं । ओल्डनबर्ग को अपने मत-स्थापन में महेन्द्र के लङ्का में धर्म-प्रचार संबंधी कार्य को भी, जो अन्यथा सब प्रकार ऐतिहासिक तथ्यों से सिद्ध है, अनैतिहासिक मानना पड़ा है। इसी से उनके मत की गंभीरता का पता लग जाता है । खंडगिरि के शिलालेख के साक्ष्य पर पालि का जन्म-स्थान कलिंग बतलाना उतना ही अपूर्ण सिद्धांत है जितना गिरनार के शिलालेख के आधार पर उसे उज्जयिनी - प्रदेश की बोली ठहराना । पालि के प्रांतीय कारणों से उत्पन्न मिश्रित स्वरूप को दिखाने के अतिरिक्त इन मतों का अन्य कोई साक्ष्य या महत्व नहीं है । जिन विद्वानों ने पालि-भाषा के मागधी आधार को स्वीकार किया हैं, अथवा जिन्होंने सिंहली परम्परा को कुछ विशिष्ट अर्थों में समझने का प्रयत्न किया है, उनमें जेम्स एल्विस, चाइल्डर्स, विंडिश, विन्टरनित्ज़, ग्रियर्सन और गायगर के १. देखिये आगे दूसरे अध्याय में 'पालि साहित्य का उद्भव और विकास' सम्बन्धी विवेचन
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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