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________________ ( ३२२ ) मिलना-जुलना, जीविका के लिए कोई शिल्प न सीखना न सिखाना, अंग-लेप आदि न लगाना, आदि । भिनुणियों पर भी पाराजिका आदि दोष उसी प्रकार लागू थे जैसे भिक्षुओं पर। हाँ, प्राज्या प्राप्त करने से पहले के दोषों के लिए वे दंड की भागिनी नहीं होती थीं ! एक वार एक व्यभिचारिणी स्त्री संघ में प्रवेश पा गयी थी। संघ-प्रवेश के बाद वह उसके लिए दंडित नहीं की गई। पर नि-भिक्षुणियों सम्बन्धी नियमों और उनके उल्लंघन करने पर प्राप्त दण्ड-विधान का कुछ दिग्दर्जन किया गया है। वास्तव में विनय-पिटक नियमों और उनके उल्लंघन में उत्पन्न दोपों को इतनी लम्बी सूची है कि उसका संक्षेप नहीं दिया जा सकता। किन्तु विनय-पिटक में नियमों के अलावा और भी बहुत कुछ है। उसकी विषय-वस्तु के क्रम में ये नियम और अन्य बातें कहाँ कहाँ आती है, यह तत्सम्बन्धी विश्लेषण से स्पष्ट होगा। जैमा पहले कहा जा चुका है, विनय-पिटक निम्नलिखित भागों में विभक्त है-- १. मुत्त-विभंग (अ) पाराजिक (आ) पाचित्तिय २. बन्धक (अ) महावग्ग (आ) चुल्लबग्ग : . परिवार मुत्त-विभंग सत्त-विभंग के दो भागों 'पाराजिक' और 'पाचित्तिय' में क्रमशः उन अपगधों का उल्लेख है, जिनका दंड क्रमानुसार संघ से निष्कासन या किसी प्रकार का प्रायश्चिन है। ये अपराध संख्या में २२७ है और जैमा हम अभी दिखा चके है, इन मम्बन्धी नियम आठ वर्गीकरणों में विभक्त है, यथा (१) चार पाराजिक, (२) १३ संघादिमेम, (३) दो अनियता धम्म, (८) तीम निस्सग्गिया पाचित्तिया धम्म, (५) ९२ पाचिनिय धम्म, (६) चार पटिदमनिय धम्म, (७) ७५ मेखिय धम्म, तथा (८) सात अधिकरणसमथ धम्म । इनका विश्लेपण हम पहले कर चके हैं। सत्त-विभंग में इन्हीं नियमो का विश्लेपण है। माथ में इन नियमो का
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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