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________________ ( ३१५ ) कही गई है । ( 'मिलिन्दपञ्ह' में भी १५० शिक्षापदों का वर्णन है २ । यदि पालि सूची की कुल संख्या (२२७) में से हम उसके ७५ 'सेखिय' धर्मो को, जो अल्प महत्त्व के हैं, निकालते हैं तो वाकी संख्या १५२ बच जाती है । किन्तु 'शिनुन्रित्स्' की कुल संख्या २५० में मे उसके १०० शैक्ष्य' धर्मो को निकाल देने पर टीक मंख्या १५० बच जाती है । क्या पालि विनय-पिटक की अपेक्षा 'शत्रुन्-रित्स' उस परम्परा का अधिक वाहक है जिसके आधार पर अंगत्तर-निकाय या मिलिन्दपञ्ह में शिक्षापदों की संख्या १५० बताई गई है ? विनय पिटक के नियम पालि विनय-पिटक के अनुमार अब हम उसके ऊपर निर्दिष्ट २२७ शिक्षापदों या विनय-सम्बन्धी नियमों का वर्णन करेंगे। चार पाराजिका धम्मा _ 'पाराजिक धम्म' का अर्थ है वे वस्तुएँ जो भिक्षु को पराजय दिलाती हैं, अर्थात् जिस उद्देश्य के लिये उसने घर से बेघर होकर प्रन ज्या ली है उसमें उसे सफल नहीं होने देतीं । इस प्रकार की वस्तुएँ चार हैं, (१) स्त्री-मैथुन (२) चोरी या न दी हुई वस्तु को लेना (३) मृत्यु या आत्म-हत्या की प्रशंमा करना, ताकि कोई दूसरा आदमी आत्म-हत्या करने के लिये उद्यत हो जाय (6) लाभ या सत्कार की इच्छा से अपने अन्दर ज्ञान और दर्शन की प्राप्ति दिखाना जब कि वास्तव में ऐसी प्राप्ति नहीं हुई है । ये चार वस्तुएं भिक्ष को उसके श्रामण्य के उद्देश्य की प्राप्ति नहीं होने देती। वे उसे पराजित कर डालती है । इमीलिये वे 'पाराजिक धम्म' कहलाती हैं। इनमें से किसी एक का भी अपराधी होने पर भिक्षु बुद्ध का शिष्य नहीं रहता। वह अपने उद्देश्य से पतित हो जाता है। वह १. देखिये विटरनिरज : हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ २३, पद-संकेत ५; अंगत्तर-निकाय में वास्तव में शब्द है 'साधिकं दियड्ढसिक्खापदसतं' (१५० या उससे कुछ अधिक) जिसका अर्थ आचार्य बुद्धघोषने ठीक १५० किया है। 'मिलिन्दपन्ह में भी बिलकुल यही शब्द है। २. देखिये, पृष्ठ २६७ (बम्बई विश्वविद्यालय का संस्करण)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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