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________________ ( ३१० ) अन्तर कर दिया गया हो । चुकि इस संगीति का इस पिटक में विवरण भी है, अतः उसी समय इसके रूप का अन्तिम स्थिरीकरण हो गया था, यही इसके संकलन-काल के विषय में हमें जानना चाहिये। बौद्ध परम्परा विनय-सम्बन्धी सब नियमों का प्रज्ञापन बुद्ध-मुख से ही हुआ मानती है। आचार्य वद्धघोष (चौथी-पाँचवी शताब्दी ईसवी) ने समन्तपासादिका (विनय-पिटक की अट्ठकथा) के प्रारम्भ में भिक्षुओं की उस अप्रतिहत परम्परा का उल्लेख किया है जिसने वुद्ध-काल से लेकर उनके समय तक विनय-पिटक का उपदेश दिया। बुद्ध-काल में विनय-धरों में उपालि स्थविर प्रधान थे, यह हम अंगुत्तर-निकाय के एतदग्गवग्ग से जानते हैं। प्रथम संगीति के अवसर पर उन्होंने ही विनय का संगायन किया, यह विनय-पिटक की सूचना है। अनः विनय-धरों की परम्परा स्थविर उपालि से ही प्रारम्भ होती है । बुद्ध-शिष्य उपालि से लेकर अशोक के समकालिक मोग्गलिपुत्त तिस्स तक विनयधरों की इस परम्परा का उल्लेख आचार्य वुद्धघोष ने इस प्रकार किया है (१) बुद्ध (२) उपालि (३) दासक (४) सोणक (५) सिग्गव और (६) मोग्गलिपुन तिस्स । "श्री जम्बुद्वीप में तृतीय संगीति तक इस अटूट परम्परा से विनय आया।... .. .तृतीय संगीति मे आगे इसे इस (लंका) द्वीप में महेन्द्र आदि लाये। महेन्द्र से सीख कर कुछ काल तक अरिष्ट स्थविर आदि द्वारा चला। उनसे ही उनके शिष्यों की परम्परा वाली आचार्य परम्परा में आज तक विनय आया, जैसा कि पुराने आचार्यों ने कहा है, (७) महिन्द, इट्ठिय, उनिय, संवल और भद्दसाल ये महाप्राज्ञ भारत (जम्पुढीप) मे यहाँ आये। उन्होंने तम्बपण्णि (ताम्रपर्णी-लंका) द्वीप में विनय-पिटक पढ़ाया . . . . . .तब (८) आर्य तिष्यदत्त (९) काल सुमन (१०) दीर्घ स्थविर (११) दीर्घ सुमन (१२) काल मुमन (१३) नाग स्थविर (१४) बुद्धरक्षित (१५) तिष्य स्थविर (१६) देव स्थविर (१७) मुमन (१८) चूलनाग (११) धर्मपालित (२०) रोहण (२१) क्षेम (२२) उपतिप्य (२३) पुप्यदेव (२४) सुमन (२५) पुष्य (२६) महाशिव (महामीव) (२७) उपालि (२८) महानाग (२१) अभय (३०) तिप्य (३१) पुष्य (३२) चल अभय (३३) तिप्य म्थविर (३४) चूलदेव (३५) शिव स्थविर . . . . ...इन महाप्राज्ञ, विनयन मार्ग-कोविदों ने ताम्रपर्णी (लंका) द्वीप में विनय-पिटक को प्रकाशित
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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