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________________ ( २६८ ) किं कयिरा चित्तम्हि सुसमाहिते (गाथा ६१) । फलतः निर्वाण-प्राप्ति में उनका अधिकार था और उसे प्राप्त भी उन्होंने किया था, जिसके साक्ष्य-स्वरूप उन्होंने अपने उद्गार भी किये है। महाराज शुद्धोदन की मृत्यु के उपरान्त भगवान् बुद्ध ने अपनी विमाता महाप्रजापती गोतमी को भिक्षुणी होने की अनुमति दे दी थी। उसके साथ पाँच सौ अन्य शाक्य-महिलाएं भी प्रवजित हुई थीं। कालान्तर में भिक्षुणियों का एक अलग संघ ही बन गया था और नाना कुलों और नाना जीवन की अवस्थाओं से प्रजित होकर उन्होंने शाक्य-मुनि के पाद-मूल में बैटकरसाधना का मार्ग स्वीकार किया था । इन्हीं में से कुछ भिक्षुणियाँ अपने जीवनानुभवों को हमारे लिये छोड़ गई हैं जो थेरीगाथा' के रूप में आज हमारे लिये उपलब्ध हैं। किम उद्देश्य मे, किन कारणों मे, किम सामाजिक परिस्थिति में, प्रत्येक भिक्षुणी ने बुद्ध , धम्म और मंघ की शरण ली थी, इसका विस्तत विवरण तो 'थेरीगाथा' की अर्थकथा ‘पग्मत्थदीपनी' में उपलब्ध है, जो पाँचवीं शताब्दी ईसवी की रचना है । इसी के आधार पर यहाँ संक्षेप में यह दिखाया जा सकता है कि किन नाना कारणों से इन भिक्षुणियों ने घर को छोड़कर प्रव्रज्या ली। इनमें से कुछ, जैसे मुक्ता (२) और पूर्णा (३) अपनी ज्ञान-सम्पत्ति की पूर्णता के कारण प्रबजित हुईं। कुछ ने घर के काम काज और दोपों मे ऊब कर प्रव्रज्या ली, जैसे मुक्ता (११) गुप्ता (५६) और गुभा (७०) । धम्मदिना (१६) ने पति की विरक्ति के कारण प्रव्रज्या ली । धम्मा (१७) मैत्रिका (२४) दन्निका (३२) सिंहा (४०) मुजाता (५३) पूर्णिका (६५) रोहिणी (६७) गुभा (७१) चित्रा (२३) शुक्ला (३४) अम्बपाली (६६) अनोपमा (५४) तथा शोभा (२८) ने गाम्ना में श्रद्धा के कारण प्रव्रज्या ली। प्रियजनों की मृत्यु और उनके विरह के कारण प्रव्रज्या लेने वाली भिक्षुणियों में श्यामा (३६) उर्विरी (३३) किमा गोतमी (६३) वासेट्ठी (५१) सुन्दरीनन्दा (४१) चन्दा (४९) पटाचाग (४७) तथा महाप्रजापती गोतमी हैं। पुत्रों की अकृतज्ञता गोणा (४५) की प्रव्रज्या का कारण हुई। भद्रा कुंडलकेगा और ऋषिदामी ने अकृतज्ञ, धर्न पतियों के कारण प्रव्रज्या ली। पति का अन मग्ण कर भद्रा कापिलायिनी और चापा प्रवजित हुई । इमी प्रकार भाई (मारिपुत्र) का अनमरण कर चाला, उपचाला और शिशपचाला प्रवजित हो गई।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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