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________________ ( २५२ ) बढ़ कर भगवान् की वन्दना करने गया । पुरुषोत्तम (बुद्ध) उस पर कृपा करके स्वयं खड़े हो गए। फिर सर्वलोकानुकम्पक कारुणिक शास्ता ने उससे कहा “आ भिक्षु' ! यही उसकी उपसम्पता हुई। आज भिक्षु की यह हालत है कि इन्द्र और ब्रह्मा भी आकर अञ्जलि बाँध कर उसको प्रणाम करते हैं।' भिक्षुओं के आन्तरिक जीवन का एक अनठा चित्र हमें स्थविर तालपुट के आत्मोद्गार में मिलता है। इम भिक्षु ने अपने चित्त को सम्बोधन कर कुछ महनीय उद्गार किए हैं जिनकी तुलना समर्थ रामदास के 'मनाचे श्लोक' और गोस्वामी तुलसीदास के 'विनय-पत्रिका' के अनेक पदों से अच्छी प्रकार की जा सकती है। वैमे तो लालपुट स्थविर द्वारा उच्चरित सभी गाथाएँ (१०९१-११४५) उद्धरणीय है, परन्तु यहाँ स्थानाभाव से केवल कुछ का उद्धरण ही उपयुक्त होगा। स्थविर तालपुट अपने मन को सम्बोधन करते हुए कहते हैं, "हे चिन ! जैसे फल की इच्छा करने वाला मनुष्य वृक्ष को लगाकर फिर उसकी जड़ को ही तोड़ने की इच्छा करे, उसी प्रकार हे चिन ! मुझको चल और अनित्य इस संसार में लगातार तू वैसा ही करता है ! २. . . . .हे चिन ! सर्वत्र ही तो मैंने तेरे वचन को किया है, अनेक पूर्व १. नीचे कुलम्हि जातोहं दलिदो अप्पभोजनो। होनं कम्मं ममं आसि अहोसि पुग्फछड्डको ॥६२ नीचं मनं करित्वान वन्दिस्सं बहुकं जनं ।६२१ अथ अद्दसासि सम्बुद्धं भिक्खुसंघपुरक्खतं पविसन्तं महावीरं मगधानं पुरत्तमं ॥ ६२२ निक्खपित्वान व्याभंगि वन्दितुं उसपसंकमि । ममेव अनुकम्पाय अठ्ठासि पुरिसुत्तमो ॥६२३ ततो कारुणिको सत्था सब्बलोकानुकम्पको। एहि भिक्खूति मं आह सा मे आसुपसम्पदा ॥६२५ . . . . . . . . इन्द्रो ब्रह्मा च आगन्त्वा में नस्सिसु पञ्जलि ॥६२८ २. रोपेत्वा रुक्खानि यथा फलेसी मूले तरुं छेत्तु तमेव इच्छसि । तथूपमं चित इदं करोसि यं मं अनिच्चम्हि चले नियुञ्जसि ॥११२१
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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