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________________ ( २२६ ) वग्ग), (२) मचलिन्द वर्ग (मचलिन्द वग्ग), (३) नन्द वर्ग (नन्द वग्ग.). (४) मेघिय वर्ग (मेघिय वग्ग), (५) शोण-स्थविर संबंधी वर्ग (मोणत्थेरम्स वग्ग), (६) जान्यन्ध वर्ग (जच्चन्ध वग्ग), (७) चुल वर्ग (चल वग्ग), और (८) पाटलिग्राम वर्ग. (पाटलिगामिय वग्गो) । प्रत्येक वर्ग के प्रत्येक सूत्र में भगवान् का गाथा बद्ध उदान है। शैली सरल है और सब जगह प्रायः एक सी ही है। उदाहरण के लिए पांचवें वर्ग के इस सातवें सुन को उद्धृत किया जाता है-- “एसा मैंने सुना-- एक समय भगवान् श्रावस्ती मे अनाथपिडिक के जेतवन आराम में विहार करते थे। उस समय भगवान् के पास ही आयुष्मान् कांक्षारेवत आसन लगाये, अपने शरीर को सीधा किए, कांक्षाओं से शुद्ध हो गये अपने चित्त का अनुभव करते बैठे थे । भगवान् ने पास ही में आयुष्मान कांधारेवत को आसन लगाये, अपने शरीर को सीधा किये, काक्षाओं से शुद्ध हो गए अपने चित्त का अनुभव करते देखा। इस जाने, उस समय भगवान के मुह से उदान के य शब्द निकल पड़े-- "लोक या परलोक में, अपनी या परायी, (संसार सम्बन्धी) जितनी कांक्षाएं है, ध्यानी उन सभी को छोड़ देते है, तपस्वी ब्रह्मचर्य बन का पालन करते है।" सब सुनों की यही शैली है। पहले कहानी या पृष्ठभूमि आती है, फिर बुद्ध का भावातिरेकमय वचन । कहीं कहीं कहानी अपनी प्रभावशीलता और मौलिकता भी लिये हुए है जैसे ३।२ में नन्द की कहानी, या २८ में सुप्रवासा की कथा। कहीं कहीं, जैसा विटरनिन्ज़ ने दिखाया है, उदानों के लिए उपर्युक्त पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए मंगीतिकारो ने कथाओं को अपनी तरफ मे गढ़ा भी है जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली है। विंटरनित्ज़ के इस कथन में सर्वाग में सहमत होना अशक्य है। उदाहरणतः ८१९ में आयुष्मान् दब्ब जो एक महान् साधक और भगवान बद्ध के शिष्य थे, की निर्वाण-प्राप्ति के अवमर पर भगवान् ने यह उदान किया "शरीर को छोड़ दिया, मंज्ञा निरुद्ध हो गई, सारी वेदनाओं को भी बिलकुल
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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