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________________ ६. रतन सुत्त (रत्नसूत्र)--१७ गाथाओं म बुद्ध, धम्म और संव, इन तीन रत्नों की महिमा वर्णन की गई है और उसी से लोक-कल्याण की कामना की गई है। आरम्भ की दो और अन्त की तीन गाथाएं तो बड़ी ही मार्मिक है। बौद्ध परम्परा इन्हें मौलिक गाथाएँ मानती है। बुद्ध, धर्म और संघ की महिमा का वर्णन करते हुए प्रत्येक के विषय में कहा गया है 'इदं पि बुद्धे रतनं पणीतं' (यह बुद्ध रूपी रत्न ही सर्वोनम है। 'इदं पि धम्मे रतनं पणीतं' (यह धम्म रूपी रत्न ही सर्वोत्तम है) और 'इदंपि संघे रतनं पणीतं' (यह संघ रूपी रत्न ही सर्वोत्तम है)। इस सत्य रूपी वाणी से लोक-कल्याण की कामना करते हुए कहा गया है--एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु (इस सत्य से लोक का कल्याण हो) ७. तिरोकुड्ड-सुत्त--मृत आत्माएं अपने छोड़े हुए घरों के दरवाजों पर और उनकी देहलियों पर आकर खड़ी हो जाती हैं। वे अपने सम्बन्धियों से भोजन और पान की इच्छा रखती है । प्रेतों के लोक में खेती और वाणिज्य नहीं होते। उन्हें जो कुछ इस लोक से मिलता है, उसी पर वे गुजारा करते हैं। सद्गृहस्थ प्रेतों के कल्याण की कामना से भोजन और जल का दान करते हैं। सुप्रतिष्टित भिक्षु-संघ को जो कुछ दान किया जाता है, वह प्रेतों के चिर सुख और कल्याण के लिये होता है। यह सत्त भारतीय समाज में प्रचलित श्राद्ध-विधान और पितर-पूजा का बौद्ध संस्करण ही है । दार्शनिक सिद्धान्त भिन्न रखते हुए भी बौद्ध जनता किस प्रकार भारतीय समाज में प्रचलित व्यवहारों और सामान्य विश्वासों से अपने को विमुक्त नहीं कर सकी, यह सुत्त इसका एक अच्छा उदाहरण है। इस सत्त की कुछ गाथाओं का पाठ आज भी सिंहल और स्याम देशों में मर्दो को जलाते समय किया जाता है। ८. निधिकंड सुत्त (निधि सम्बन्धी सूत्र)--सर्वोत्तम निधि. क्या है ? दान, शील, संयम, इन्द्रिय-विजय, संक्षेप में पुण्य कर्मों का करना ही सर्वोत्तम निधि है। अन्य सब निधियाँ तो नष्ट हो जाने वाली हैं, किन्तु किया हुआ शुभ कर्म कभी नष्ट नहीं होता। यही वह निधि है जो मनुष्य के पीछे जाने वाली है--यो निधि अनुगामिको। ९. मेत्त-सुन्न (मैत्री-सूत्र)--ऊपर, नीचे, चारों ओर, लोक को मित्रता की भावना से भर दो। किसी का दुःख-चिन्तन मत करो। भावना करो कि १४
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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