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________________ ( १९५ ) जित् और आनन्द का संवाद भी देखा हे। अंगुनर-निकाय के कोसल-मत्त में हम उमे बुद्ध के प्रति अतीव श्रद्धा और प्रेम प्रदर्शित करते हुए देखते हैं। श्रावस्ती में भगवान के दर्शनार्थ वह जाता है। जेतवन-आराम के द्वार पर ही वह भिक्षुओं से भगवान् के दर्शन-विषयक अपनी इच्छा को प्रकट करता है। "महाराज ! यह द्वार-वन्द कोठरी है, चुपके से धीरे धीरे वहाँ जाकर बरामदे में प्रवेश कर, खाँस कर जंजीर को खटखटा देना। भगवान् तुम्हारे लिये द्वार खोल देंगे।' भगवान् ने द्वार खोल दिया। "विहार में प्रविष्ट हो प्रमेनजित् भगवान् के पैरों में गिरकर, भगवान् के पैरों को मुख से चूमता था, हाथ से पैरों को दवाता था और अपना नाम सुनाता था 'भन्ते ! मैं राजा प्रसेनजित् कोसल हूँ।" "महाराज! तुम किस बात को देखकर इस शरीर में इतनी मैत्री का उपहार दिखाते हो?" "भन्ते ! कृतज्ञता, कृतवेदिता को देखते हुए मैं भगवान् की इस प्रकार की परम सेवा करता हूँ, मैत्री उपहार दिखाता हूँ। भन्ते ! भगवान् बहुत जनों के हित, बहुत जनों के सख के लिये हैं"। अंगुत्तर-निकाय में हम देखते हैं कि मगधराज अजातशत्रु वज्जियों के गण-तन्त्र के विरुद्ध अभियान करना चाहता है। भगवान् जिस समय राजगृह में गृध्रकूट-पर्वत (गिज्झकूट पब्बत) पर विहर रहे थे, उसने अपने मन्त्री वर्षकार (वस्सकार) नामक ब्राह्मण को उनमे इस सम्बन्ध में पूछने के लिये भेजा था । सोलह महाजन-पदों का इस निकाय में विशेष वर्णन है ।' इन सोलह महाजन पदों के नाम है अंग, मगध, काशी, कोशल, वज्जि, मल्ल, चेति, वंस, कुरु, पंचाल (पांचाल), मच्छ (मत्स्य), सूरसेन (शूरसेन), अस्सक (अश्वक-अश्मक), अवन्ती, गन्धार और कम्बोज । ये सभी नाम उन प्रदेशों के निवासियों (जनों) के सूचक है। गणतन्त्र-प्रणाली की यह मुख्य विशेषता थी। भौगोलिक दृष्टि से भी इस निकाय के अनेक वर्णन बड़े महत्त्व के है। उदाहरणत: यहाँ गंगा, यमुना, अचिरवती, सरभू (सरयू) और मही इन पाँच बड़ी नदियों का वर्णन है। इसी प्रकार भंडगाम (वज्जि-प्रदेश) इच्छामंगल (कोगल) आदि ग्रामों, केमपुत्त (कालाम नामक क्षत्रियों का कस्बा) १. अंगुत्तर-निकाय, जिल्द पहली, पृष्ठ २१३, जिल्द चौथी, पृष्ठ २५२, २५६, २६०, आदि (पालि टैक्स्ट सोसायटी का संस्करण)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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