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________________ ( १७२ ) १०. आनापान-संयुत्त-भगवान् ने प्राणायाम या श्वास-प्रश्वास को नियमित करने का उपदेश दिया है और उसे मार्ग-प्राप्ति का सहायक माना है। __ सोतापत्ति-संयुत्त--स्रोतापत्ति अवस्था अर्थात् धर्म रूपी नदी की धारा में पड़ना, इसका वर्णन किया गया है। बद्ध-धर्म और संघ में जिसकी श्रद्धा और निष्ठा है वह सांसारिक लाभों की चिन्ता नहीं करता। वह इच्छा और द्वेष को छोड़कर फिर इस लोक में नहीं आता। सच्च-संयुत्त--चार आर्य सत्यों का वर्णन है। दुःख, दुःख-समुदय, दुःखनिरोध और दुःख-निरोध-गामिनी प्रतिपद्, इन चार आर्य सत्यों का उपदेश बद्ध-धर्म की प्रतिष्ठा है। प्रायः समान शब्दों में इन सम्बन्धी उपदेश का वर्णन त्रिपिटक में अनेक बार आया है। उपर्युक्त संक्षिप्त विवरण में यद्यपि वर्गों और संयुक्तों के क्रम से उनकी विषय-वस्तु का संक्षिप्त दिग्दर्शन करा दिया गया है, किन्तु उनके असंख्य सत्तों की वह सामग्री अभी बाकी ही बच रहती है जो उन्होंने बुद्ध, उनके जीवन, उनके उपदेश, इसी प्रकार बुद्ध-शिष्यों के जीवन और उपदेश, तत्कालीन धर्मोपदेष्टाओं और धार्मिक विचारों के साथ बुद्ध और उनके धम्म का सम्बन्ध, तत्कालीन ऐतिहासिक और भौगोलिक परिस्थिति, एवं इसी प्रकार के अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों के सम्बन्ध में दी है। इन सम्बन्धी स्मृतियों का कुछ संक्षिप्त दिग्दर्शन करना यहाँ आवश्यक होगा। संयुत्त-निकाय के 'धम्म चक्क पवत्तनसत्त' में (जो विनय-पिटक-महावग्ग के इस सम्बन्धी वर्णन की पुनरुक्ति ही है) हम वाराणसी के ऋषिपतन मृगदाव (वर्तमान सारनाथ) में पञ्चवर्गीय भिक्षुओं को उपदेश करते देखते हैं। काम-वासनाओं में काम-लिप्त होना और काय-क्लेश में लगना, इन दो अतियों के त्याग एवं आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग २. मिलाइये विशेषतः भयभेरव-सुत्त (मझिम. १२११४); द्वेधा वितक्क सुत्त (मज्झिम. १०२।९) महाअस्सपुर-सुत्त (मज्झिम. ११४१९); चूलहत्थिपदोपम सुत्त (मज्झिम. १।३।७ ; सामञफल सुत्त (दोघ. ११२); अम्बट्ठसुत्त (दोघ. १॥३); सोणदंड सुत्त (दीघ. ११४); कूटदन्त सुत्त (दीघ. ११५); महालिसुत्त (दीघ. ११५) पोट्ठपाद-सुत्त (दोघ. ११९) केवट्टसुत्त (दीघ. ११११) सुभ-सुत्त (दीघ. १।१०,; चक्कवत्तिसोहनाद सुत्त (दीघ. ३।३); संगीतिपरियायसुत्त (दीघ. ३१०) आदि, आदि ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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