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________________ सत्कार को चाहने वाले भिक्षु का पतन हो जाता है और उसकी वही गति होती है जो अंकुश को निगलने वाली मछली की। ७. राहुल संयुत्त-राहुल को संयम का उपदेश। शब्द, स्पर्श, रूप, रस गन्ध, सभी अनित्य और दुःख-रूप हैं। उनमें 'मैं' या 'मेरा' की भावना करने से दुःख ही हो सकता है। उनमें से किसी के विषय में 'यह मैं हूँ' 'यह मेरा आत्मा है' ऐसी भावना करना उपयुक्त नहीं। ८, लक्खण-संयुत्त-एक दिन धर्मसेनापति सारिपुत्र और एक अन्य भिक्षु जिसका नाम लक्खण (लक्षण) था साथ साथ भिक्षा-चर्या को जा रहे थे। अचानक सारिपुत्र को हँसी आ गई। भिक्षा से लौट आने के बाद लक्षण ने उनकी इस हँसी का कारण पूछा। धर्म सेनापति ने भगवान् बुद्ध और अन्य भिक्षुओं की उपस्थिति में उसका कारण बताया। ९. ओपम्म-संयुत्त-भगवान् ने भिक्षुओं को सचेत और जागरूक रहने का उपदेश दिया है। यहाँ उन्होंने उपमा (ओपम्म) की है। जिस प्रकार यदि लिच्छवि गणतन्त्र के लोग सतत जागरूक और सचेत नहीं रहेंगे तो अजातशत्रु (मगधराज) उन्हें दबा लेगा, पराजित कर देगा, इसी प्रकार यदि भिक्षु अपने आचरण में थोड़ा भी प्रमाद करेंगे, तो उन्हें मार अपने फन्दे में दबा लेगा। १०. भिक्खु-संयुत्त-महामोग्गल्लान (महामौद्गल्यायन) का भिक्षुओं को 'आर्य-मौन' पर उपदेश। उन्होंने बताया है कि 'आर्य-मौन' का वास्तविक आचरण द्वितीय ध्यान की अवस्था में होता है। भगवान् बुद्ध नन्द और तिष्य (तिस्स) नामक भिक्षुओं को भिक्षु-नियमों का पूरा पालन करने को कहते हैं । ३-खन्धवग्ग १. खन्ध-संयुत्त-पञ्चस्कन्धों का वर्णन है। रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान अनित्य, परिवर्तन-शील और दुःख-रूप हैं। इनमें 'यह मैं हूँ' 'यह मेरा है' या 'यह मेरा आत्मा है' इस प्रकार की भावना साधक को नहीं करनी चाहिये । बल्कि इनके उदय (उत्पत्ति) और व्यय (विनाश) का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये और इनमें मन को आसक्त नहीं करना चाहिये। पञ्चस्कन्धों की अनित्यता और दुःखमयता का चिन्तन करने पर काम-वासना रह ही नहीं सकती, और पुनर्जन्म, अविद्या, आत्माभिनिवेश, सभी नष्ट हो जाते हैं।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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