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________________ भारतीय ग्रामीण जीवन का इस निकाय में बड़ा सुन्दर चित्र मिलता है। साथ में काव्यात्मक अंश भी हैं और लोक-आख्यान भी कहीं कहीं समाविष्ट हैं। यक्ष, यक्षिणी, देवता और गन्धर्वो का इस निकाय में कुछ अधिक निर्देश मिलता है। किन्तु इससे पृष्ठ भूमि की स्वाभाविकता में कोई अन्तर नहीं आने पाया। भगवान् बुद्ध के स्वभाव और जीवन की विशेषताएं, उनकी गम्भीरता, प्राणि-मात्र के प्रति उनकी करुणा, इसी कारण मनुष्य-समाज के अज्ञानों पर उनके मृदुल व्यंङ्ग य, उनकी विनम्रता, मानवीयता, सभी इस निकाय में उसी प्रकार प्रस्फुटित होती हैं जैसे पूर्व के दो निकायों में। शैली की दृष्टि से भी इस निकाय की दीघ और मज्झिम की अपेक्षा कोई विशेषता नहीं । पुनरुक्तियाँ वही दोनों निकायों की सी हैं। 'सडायतन वग्ग, इसका एक अच्छा उदाहरण है। यद्यपि संयुत्त-निकाय का अधिकांश भाग गद्य में है, किन्तु प्रथम वर्ग 'सगाथ वग्ग' (गाथा-युक्त वर्ग) में बड़ी सुन्दर, भावात्मक गाथाएँ भी मिलती हैं। मारसंयुत्त और भिक्खुनी-संयुत्त, आख्यानात्मक काव्य के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। गद्य और पद्य दोनों में ही यह आख्यान-साहित्य संयुत्त-निकाय में मिलता है। 'भिक्खुनी-संयुत्त' जैसे आख्यानों में नाटकीय तत्त्व भी अपनी विशेषता लिये हुए है, जो इन रचनाओं को एक विशेष गति और क्रियाशीलता प्रदान करता है। जैसा पहले दिखाया जा चुका है, संयुत्त-निकाय पाँच वर्गों में विभक्त है, जिनमें क्रमश: ११, १०, १३, १० और १२ अर्थात् कुल मिला कर ५६ संयुत्त हैं। यह विभाजन पूर्णतया विषय की दष्टि से नहीं है। जैसा विटरनित्ज़ ने कहा है, संयुत्त-निकाय के वर्गीकरण में तीन सिद्धान्तों का अनुवर्तन किया गया मालूम होता है (१) बुद्ध-धर्म के किसी मुख्य पहलू का विवेचन करने वाले सुत्तों को एक संयुक्त में वर्गीकृत कर दिया गया है, जैसे वोज्झङ्ग-संयुत्त आदि । (२) मनुष्य, देवता या यक्ष आदि के निर्देश के आधार पर उनका अलग अलग वर्गों में विभाजन कर दिया गया है, जैसे देवता-संयुत्त आदि (३) वक्ता या उपदेष्टा के रूप में जो प्रधान व्यक्ति अनेक सुत्तों में दृष्टिगोचर होता है, उस सम्बंधी उपदेशों को एक संयत्त में सम्मिलित कर दिया गया है, जैसे सारिपुत्त-संयुत्त आदि । वर्ग वार इन सुत्तों की विषय-वस्तु का यहाँ कुछ संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक होगा। १. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ५६; मिलाइये गायगर : पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ १८ ११
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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