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________________ ( १५६ ) ८८. बाहितिक - सुत -- शुभ और अशुभ आचरण । बुद्ध अशुभ आचरण नहीं कर सकते । आनन्द का प्रसेनजित् को उपदेश । ८९. धम्मचेतिय-सुत्त -- भोगों के दुष्परिणाम एवं बुद्ध की प्रज्ञा का दर्शन । ९०. कण्णकत्थल-सुत्त --- क्या बुद्ध सर्वज्ञ हैं ? (१०) ब्राह्मण - वग्ग ९१. ब्रह्मायु- सुत्त -- ३२ महापुरुष - लक्षण । तथागत के ईर्यापथ का विवरण | ब्राह्मण, वेदगू आदि शब्दों की बुद्धमतानुसार व्याख्या । ९२. मेल - सुत्त - - सेल ब्राह्मण की प्रव्रज्या । ९३. अस्सलायन - सुत्त -- जातिवाद का खंडन | श्रावस्ती - निवासी आश्वलायन ब्राह्मण का यहाँ वर्णन है, जिसे विद्वानों ने प्रश्न- उपनिषद् के आश्वलायन से मिलाया है । ९४. घोटमुख- सुत्त -- आत्म- पीड़ा की निन्दा | ९५. चंकि सुत्त - बुद्ध के गुणों का वर्णन । सत्य की रक्षा और प्राप्ति के उपाय ९६. फासुकारि-सुत्त --- जातिवाद की निन्दा | ९७. धानंजानि-सुत्त - - गृहस्थ-बन्धन अशुभ कर्म करने का वहाना नहीं । ९८. वासेट्ठ-सुत्त -- वास्तविक ब्राह्मण कौन ? ९९. सुभ-सुत्त --गृहस्थ और संन्यास की तुलना । १००. संगारव - सुत्त -- बुद्ध - जीवनी का विवरण | बुद्ध द्वारा देवताओं के अस्तित्व की स्वीकृति । (११) देवदह वग्ग १०१. देवदह - पुत्त -- निगंठों के मत का विवरण । १०२. पञ्चत्तय सुत्त -- आत्मवाद आदि नाना मतवादों का खंडन । १०३. किन्ति - सुत्त - भिक्षुओं को एकता का उपदेश । १०४. सामगाम - सुत्त -- बुद्ध के मूल उपदेश । संघ में शान्ति 1 सम्बन्धी उपदेश | इस सुत्त में जैन तीर्थंकर भगवान् महावीर की कैवल्य प्राप्ति की सूचना है । १०५. सुनक्खत सुत्त- ध्यान और चित्त-संयम पर प्रवचन । १०६. आनंजसप्पाय- सुत्त -- भोगों की निस्सारता । १०७. गणकमोग्गल्लान-मुत्त--- आचरण की शिक्षा का क्रमिक विकास |
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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