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________________ ( १४९ ) नत-मस्तक होना पड़ा है और उन्होंने भी यह स्वीकार किया है कि मज्झिम-निकाय में हम निश्चय ही धर्म-स्वामी के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्गार पाते हैं। जर्मन विद्वान् डा० ढालके ने मुख्यत: इसो एक ग्रन्थ के आधार पर अपने गम्भीर बौद्ध धर्म सम्बन्धी निवन्धों की रचना की है। मज्झिम-निकाय का वर्गीकरण १५ वर्गों में है, जिनमें कुल मिला कर १५२ सुत्त हैं। हम इस वर्गीकरण की रूपरेखा पहले दिखा चुके है। अतः यहाँ अति संक्षिप्त रूप में केवल मज्झिम-निकाय के सुत्तों के विषय की ओर इंगित मात्र करेंगे। (१) मूल परियाय वग्ग १ मूल परियाय-सुत्त--सारे धर्मों का मूल नामक उपदेश---न में, न मेरा, न मेरा आत्मा--अनात्मवाद-अनासक्तिवाद । २. सबालब-सुत्त--"भिक्षओ ! सारे चित्त-मलों के संवर (रोक) नामक उपदेश को मै तुम्हें देता है, ध्यान से सुनो।" ३. धम्म दायाद-सुत्त--"भिक्षुओ ! तुम मेरे धर्म के वारिस बनो, धनादि भोगों (आमिप) के दायाद नहीं । भिक्षुओ ! तुम पर मेरी अनुकम्पा है।" ४. भय-भैरव-सुत्त--वन-खंड और सनी कुटियों में रहने वाले अशुद्ध कायिक कर्भ संयुक्त भिक्षुओं को कभी-कभी भय हो उठता है। इसे कैसे दूर किया जाय, इसका जानस्सोणि नामक ब्राह्मण को भगवान का उपदेश है, स्वकीय पूर्व अनुभव के आधार पर। "ब्राह्मण ! शायद तेरे मन में ऐसा हो-- आज भी श्रमण गोतम अ-वीतराग' अ-वीत द्वेष, अ-वीत मोह है, इसीलिये अरण्य, वन-खंड तथा सनी कुटिया का सेवन करता है' ! ब्राह्मण ! मैं दो वानों के लिये आज भी अरण्य सेवन करता हूँ (१) इसी शरीर में अपने सम्व-विहार के विचार से (२) आगे आने वाली जनता पर अनुकम्पा करने के लिये, ताकि मेग अनुगमन कर वह भी सफल की भागी हो।" ५. अनंगन-सत्त--राग, उप और मोह से रहित (अनंगण) और उनसे युक्त व्यक्तियों के चार प्रकार--सारिपुत्र, मौद्गल्यायन और अन्य भिक्षुओं के धार्मिक संलाप। ६. आकंग्वेय्य-सुत्न--"भिक्षओ ! शील-सम्पन्न होकर विहरो, प्रातिमोक्ष रूपी संयम में संयमित होकर बिहरो. . . . . .ध्यान और विपश्यना से सक्त होगन वरों की शरण लो।"
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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