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________________ ( १४७ ) ऋद्धिबल नहीं दिखाया । “सुनवखत्त ! क्या मैंने तुझसे कभी कहा था-- सुनक्खन्त ! आ मेरे धर्म को स्वीकार कर । मैं तुझे अलौकिक ऋद्धि-बल दिखाऊँगा?" "नहीं भन्ते !" "मूर्ख ! यह तेरा ही अपराध है"। ईश्वर के जगत्कर्तृत्व का भी इस सुत्त में खंडन किया गया है। उदुम्बरिक सीहनाद सुत्त ( दीघ. ३२) उदुम्बरिक नामक परिव्राजक-आराम में भगवान् ने यह सिंहनाद किया, अतः इसका यह नाम है। यह सिंहनाद भगवान् ने न्यग्रोध नामक परिब्राजक के प्रति किया। यहाँ भगवान् ने झूठी और सच्ची तपस्याओं विषयक उपदेश दिया है और बुद्ध-धर्म की साधना से इसी जन्म में शान्ति की प्राप्ति को दिखाया है। चक्कवत्तिसीहनाद सुत्त ( दीघ. ३॥३) स्वावलम्बन, व्रत-पालन एवं चार स्मृति-प्रस्थानों के अभ्यास का उपदेश । भिक्षुओं के कर्तव्यों सम्बन्धी उपदेश भी। अग्गज-सुत्त ( दीघ. ३४) इस सुत्त में वर्ण-व्यवस्था का खंडन किया गया है। जन्म की अपेक्षा यहाँ कर्म को ही प्रधान माना गया है। सम्पसादनिय-सुत्त ( दीघ. ३५) __परम ज्ञान में बुद्ध के समान आज तक कोई नहीं हुआ। बुद्ध अत्यन्त विनम्र और निरहंकार हैं। बुद्ध के उपदेशों की विशेषताओं का विवरण भी। पासदिक-सुत्त ( दीघ. ३६) निर्ग्रन्थ ज्ञातुपुत्र (तीर्थङ्कर भगवान् महावीर) के पावा में कैवल्य-प्राप्ति की इस सुत्त में सूचना है । वुद्ध के उपदिष्ट धर्म, अव्याकृत और व्याकृत बातें, पूर्वान्त और अपरान्त दर्शन, चार स्मृति-प्रस्थान आदि विषय जो पूर्व के सुत्तों में आ चुके हैं, यहाँ फिर विवृत किये गये हैं। साथ ही यहाँ यह भी बताया गया है कि बुद्ध-धर्म चित्त की शुद्धि के लिये है और यही उसका प्रमुख उद्देश्य और उपयोग है। लक्खण-सुत्त ( दीघ. २७) इस सुत्त में ३२ महापुरुष-लक्षणों का विवरण है। साथ ही किस किस कर्मविपाक से किस किस शुभ लक्षण की प्राप्ति होती है, यह भी दिखाया गया है। इस प्रकार नैतिक उद्देश्य स्पष्ट है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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