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________________ ( १५ ) सहायता मिली है। पूज्य भिक्षु काश्यप जी के अभिधम्म-सम्बन्धी अध्ययन के फलों और निष्कर्षों को (जैसे कि वे अभिधम्म फिलॉसफी में प्रस्फुटित हुए है) पाठक इन पृष्ठों में हिन्दी-रूप में प्रतिबिम्बित देखेंगे और पूज्य राहुल जी की विद्वत्ता के फलों से मैं कितनी प्रकार लाभान्वित हुआ हूँ, इसकी तो कोई इयत्ता नहीं। उन्होंने कृपा कर इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखा है, जिसके लिए उनका अत्यन्त कृतज्ञ हूँ । पूज्य आचार्य श्री वियोगी हरिजी ने इस रचना में आदि से ही बड़ी रुचि दिखाई है, यह मेरे लिए एक बड़ी प्रेरणा और आश्वासन की बात रही है। उन्होंने ही श्री राहुल जी से मेरा परिचय कराया और इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सहायता भी की । आचार्य श्री नरेन्द्रदेव जी ने इस ग्रन्थ की रूपरेखा को देखकर मुझे अत्यधिक उत्साहित किया, जिसके लिए उनका हृदय से कृतज्ञ हूँ । पूज्य गुरुवर आचार्य श्री जगन्नाथ तिवारी जी, आचार्य श्री धर्मेन्द्रनाथ जी शास्त्री, आचार्य श्री सीताराम जी चतुर्वेदी एवं आचार्य श्री कृष्णानन्द जी पन्त का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने कृपा कर पांडु लिपि के कई अंशों को ध्यानपूर्वक पढ़ा और सत्परामर्श दिये। राजर्षि श्री पुरुषोत्तमदासजी टंडन, श्री चन्द्रबलीजी पाण्डेय, श्री कृष्णदेव प्रसादजी गौड़, श्री दयाशंकरजी दुबे, श्री पं० लक्ष्मीनारायणजी मिश्र, श्री रामप्रतापजी त्रिपाठी, एवं सम्मेलन की साहित्य समिति के सदस्यों का हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक को सम्मेलन के द्वारा प्रकाशन के योग्य समझा। अन्त में मैं श्री सीतारामजी गुण्ठे, व्यवस्थापक सम्मेलन मुद्रणालय तथा उनके सहयोगियों के प्रति हृदय से कृतज्ञता प्रकाशित करता हूँ, जिन्होंने बड़ी दक्षता से इस पुस्तक को छापा है। भगवान बुद्ध का अनुभाव उन पर अभिवर्षित हो ! किसी खोजपरक विवेचनात्मक ग्रन्थ के लेखक के लिए आजकल यह प्रायः आवश्यक माना जाता है कि वह यह बताये कि कहाँ तक उसने अपने पूर्वगामियों का अनुसरण किया है अथवा कहाँ तक उसने मौलिक स्थापनाऍ और निष्कर्ष उपस्थित किए हैं। मैं समझता हूँ यह काम तो पालि साहित्य के मर्मज्ञ समालोचक ही, जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी विद्वानों के ग्रन्थों को पढ़ा है, कर सकेंगे। जहाँ तक समझता हूँ मैंने इस पुस्तक के पृष्ठ पृष्ठ, पंक्ति पंक्ति, शब्द-शब्द, अक्षर-अक्षर का विश्लेषण कर देखा तो मुझे कहीं 'मैं' या 'मेरा' नही मिला, 'अपना' कुछ दिखाई
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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