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________________ ( १३८ ) जीवन मारे जायँ) (२) सभी पापों का वारण करते हैं (३) सभी पापों के वारण करने से पाप-रहित होते है ( ४ ) सभी पापों के वारण करने में लगे रहते हैं।” संजय वेलट्ठिपुत्र का मत अनिश्चिततावाद था। उनका कहना था “मैं यह भी नहीं कहता, मैं वह भी नहीं कहता, मैं दूसरी तरह से भी नहीं कहता । मैं यह भी नहीं कहता 'यह है'। मैं यह भी नहीं कहता 'यह नहीं है, मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता " । बुद्धकालीन धार्मिक वातावरण को जानने के लिये इन छह आचार्यो के मतों को जानना अत्यन्त आवश्यक हैं । भगवान् ने अज्ञातशत्रु को श्रमणना ( श्रामण्य ) या प्रव्रज्या का फल नैतिक मूल्यों के द्वारा बतलाया है। संसार के मूल्यों में उसे नहीं तौला जा सकता। पहले यहाँ भी गील का प्रारम्भिक, मध्यम और महा इन तीन भूमियों में विवरण है, फिर इन्द्रिय-संयम, स्मृति - सम्प्रजन्य, सन्तोष आदि के अभ्यास का विवरण है । अन्त में पश्चात्ताप से अभिभूत राजा कहता है “भन्ते ! मेने धार्मिक, धर्मराज पिता की हत्या की ! भन्ते ! भविष्य में मॅभल कर रहने के लिये मुझ अपराधी पापी को आप क्षमा करें" । जिन दृष्टियों से ब्रह्मजाल सुत्त का महत्व है, उन्हीं 'दृष्टियों' मे यह सुत्त भी महत्वपूर्ण है । वास्तव में कुछ हद तक यह उसका पुरक ही है । अम्बट्ठ-सुत्त ( दीघ १ । ३ ) पौष्कराति नामक ब्राह्मण के अम्बष्ट ( अम्बठ ) नामक शिष्य के साथ भगवान बुद्ध का संवाद है । अम्बष्ट अपने उच्च वर्ण के घमंड के कारण भगवान् के पास जाकर अशिष्टतापूर्वक बातें करता है। शाक्यों पर अनुचित आक्षेप भी करता है । जब भगवान् उसके अशिष्ट व्यवहार का उसे स्मरण दिलाते हैं तो वह कहता है ' है गोतम ! जो मडक, श्रमण, इभ्य ( नीच) काले, ब्रह्मा के पैर की सन्तान, है उनके साथ ऐसे ही कथा संलाप किया जाता है, जैसा मेरा आप गोतम के साथ ।" भगवान् उसे मिथ्या जातिवाद के अभिमान को छोड़ देने को कहते है | "अम्बष्ट ' जहाँ आवाह-विवाह होता है वहीं यह कहा जाता है 'तू मेरे योग्य है' 'तू मेरे योग्य नही है। वहीं यह जातिवाद, गोत्रवाद, मानवाद भी चलता है 'तू मेरे योग्य है' 'तू मेरे योग्य नहीं है । अम्बष्ट ! जो कोई जातिवाद में फॅसे हैं, गोत्रवाद में फंसे हैं, अभिमानवाद में फँसे हैं, आवाह-विवाह में फँसे हैं, वे अनुपम विद्या और आचरण की सम्पदा से दूर है । अम्बष्ट ! जातिवाद के बंधन, गोत्रवाद - बन्धन, मानवाद - बन्धन और आवाह-विवाह बन्धन । N
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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