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________________ ( १३४ ) अवसर और पात्रों के अनुसार संक्षिप्त और दीर्घ उपदेश दे सकते थे और संकलन के समय भिन्न भिन्न व्यक्तियों और स्रोतों से आने के कारण उन्हें वैसा ही संकलित कर दिया गया है, अतः एकही विषय-सम्बन्धी दो अल्प और बड़े आकार वाले सत्तों को देखकर बड़े आकार वाले सुत्तों को बाद के परिवर्द्धन ही नहीं माना जा सकता। उपर्युक्त तथ्य के प्रकाश में हम 'महावग्ग' के सब सुत्तों को मौलिक बुद्ध-वचन ही मानने के पक्षपाती हैं। 'पाथेय' या 'पाटिक वग्ग' का यह नामकरण इसलिये है कि इस वर्ग के सुत्तों के आदि में 'पाटिक-सुत्त' नामक सुत्त है। दीघ-निकाय' का अधिक साहित्यिक और ऐतिहासिक मल्यांकन करने के लिये पहले हम उसके सुत्तों की विषय-वस्तु का अलग-अलग संक्षिप्त निदर्शन करेंगे । खन्ध-वग्ग ब्रह्मजाल-सुत्त (दीघ ११) ब्रह्मजाल-सुत्त दीघ-निकाय का प्रथम और अत्यन्त महत्वपूर्ण सूत्र है। प्रारबुद्धकालीन भारतीय धार्मिक और सामाजिक परिस्थिति का एक अच्छा चित्र यहाँ मिलता है। विशेषतः उस धार्मिक विचिकित्सा का, जो उस समय भारतीय वायुमंडल में सर्वत्र फैली हुई थी, और उसके सम्पूर्ण अतिवादों का , एक अच्छा विश्लेषण यहाँ मिलता है। ब्रह्म जाल-सुत्त का अर्थ है श्रेष्ठ (ब्रह्म) जाल रूपी बुद्ध-उपदेश । बुद्ध-उपदेश को यहाँश्रेष्ठ जाल कहा गया है । किसे पकड़ने के लिये? फिसलकर निकल जाने वाली मछलियों रूपी मिथ्या दष्टियों को पकड़ने के लिये। इस सत्त के उपदेश के अन्तमें आनन्द ने, जो पीछे से भगवान् को पंखा झल रहे थे, पूछा “भन्ते ! इस उपदेश को क्या कह कर पुकारा जाय?" "आनन्द ! तुम इस धर्म-उपदेश को 'अर्थ-जाल' भी कह सकते हो, धर्म-जाल भी, ब्रह्म-जाल भी, का विवेचन डा० विटरनित्ज ने किया है। देखिये उनका हिस्ट्री ऑव इन्डियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ३८-४२ १. दोघ-निकाय के १-२३ सुत्त दो भागों में देव-नागरी लिपि में बम्बई विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित कर दिये गये हैं। प्रथम भाग, सुत्त १-१३; द्वितीय भाग सुत्त १४.२३; दोघ-निकाय का महापंडित राहुल सांकृत्यायन और भिक्ष जगदीश काश्यप कृत हिन्दी अनुवाद (महाबोधि सभा, सारनाथ, १९३७) तो प्रसिद्ध ही है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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