SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२५ ) होता था तो भगवान् उसे स्पष्ट करते थे। कभी कभी उनमें से किसी महाप्राज्ञ भिक्षु के कथन का अनुमोदन कर भगवान् उसे साधुवाद देते थे। विरोधी सम्प्रदाय वालों के साथ भी भिक्षुओं के इस प्रकार के संलाप अक्सर चला करते थे। उनकी भी सूचना अक्सर भिक्षु भगवान् को देते थे। भगवान् या तो उनका अनुमोदन करते थे या उन्हें समझाते थे। कभी-कभी (भगवान के जीवन के अन्तिम काल में) ऐसा होता था कि लम्बे समय तक उपदेश देते देते भगवान की पीठ पीड़ित हो उठती थी (कठिन तपस्या के कारण भगवान् को वृद्धावस्था में वातरोग हो गया था)। उस समय उपदेश के बीच में ही भगवान् सारिपुत्र, मौद्गल्यायन या आनन्द जैसे किसी शिष्य को उपदेश को पूरा कर देने का आदेश देते थे। बाद में वे इस प्रकार दिये हुए उपदेश का अनुमोदन भी कर देते थे। स्वतन्त्र रूप से भी अनेक भिक्षुओं ने एक दूसरे के प्रति या गृहस्थ शिष्यों के प्रति अनेक उपदेश • दिये हैं। इस प्रकार बुद्ध-उपदेशों के साथ साथ उनके शिष्यों के उपदेश भी सुत्तपिटक में सम्मिलित हैं। भगवान् ने अपने मुख से जो जो उपदेश दिये, अपने जीवन और अनुभवों के विषय में उन्होने जो जो कहा, जिन जिन व्यक्तियों से उनका या उनके शिष्यों का सम्पर्क या संलाप हुआ, जिन जिन प्रदेशों में उन्होंने भ्रमण किया, संक्षेप में बुद्धत्त्व-प्राप्ति से लेकर निर्वाण-प्राप्ति तक के अपने ४५ वर्षों में भगवान की जो-जो भी जीवन-चर्या रही, उसी का यथावत् चित्र हमें सुत्त-पिटक में मिलता है। बुद्ध और उनके शिष्यों के उपदेशों के अतिरिक्त हमें आकस्मिक रूप से छठी और पाँचवीं शताब्दी ईसवी पूर्व के भारत के सामाजिक जीवन का पूरा परिचय भी सुत्त-पिटक में मिलता है । बुद्ध के समकालीन श्रमणों, ब्राह्मणों और परिव्राजकों के जीवन और सिद्धान्तों के विवरण, गोतम बुद्ध के विषय में उनके मत और दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध, साधारण जनता में प्रचलित उद्योग और व्यवसाय, मनोरञ्जन के साधन, कला और विज्ञान, तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति और राजन्य-गण, ब्राह्मणों के धार्मिक सिद्धान्त,जाति-वाद, वर्णवाद, यज्ञवाद, भौगोलिक परिस्थितियाँ यथा ग्राम, निगम, नगर, जनपद आदि के विवरण और उनके जीवन की साधारण अवस्था, नदी, पर्वत आदि के विवरण, साहित्य और ज्ञान की अवस्था, कृषि और वाणिज्य, सामाजिक रीतियाँ, जीवन का नैतिक स्तर, स्त्रियों, दाम-दासियों और भृत्यों की अवस्था, आदि के विवरण सुत्त-पिटक में भरे पड़े है, जो बुद्ध और उनके शिष्यों के जीवन और उपदेशों के साथ-साथ तत्कालीन
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy