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________________ ( १२० ) ऐतिहासिक प्रणाली नहीं होगी। कम से कम यह मानना पड़ेगा कि वे धर्मवादी थे और भगवान बुद्ध के वचनों की रक्षा ही उनका प्रधान उद्देश्य था । अतः उनके द्वारा संगृहीत वचनों में मानवीय स्मरण-शक्ति की स्वाभाविक अल्पता के कारण कहीं अशुद्धि या अपूर्णता भले ही रह गई हो, किन्तु जो कुछ उन्होंने सुना था उसी का अत्यन्त सावधानी के साथ उन्होंने संगायन किया था, इतना तो हमें मानना ही पड़ेगा। जो उन्होंने संगायन किया था, उसी का संगृहीत रूप आज हमें पालि त्रिपिटक में मिलता है, यह भी निःसन्देह है ही। सर्वांश में पालि-त्रिपिटक बुद्धवचन है, ऐसी मान्यता तो स्वयं पालि-त्रिपिटक की भी नहीं है। वहाँ स्पष्टतम रूप से दिखा दिया गया है कि कौन से वचन सम्यक् सम्बुद्ध के हैं, कौन से वचन उनके शिष्यों के है, अथवा कौन से वचन अन्य व्यक्तियों के भी हैं । अतः जब हम पालि-त्रिपिटक को बुद्ध-वचन कहते हैं तो उसका अर्थ यही होता है कि वहाँ बुद्धकालीन भारत के देश-काल की पृष्ठभूमि में बुद्ध के जीवन और उपदेशों का सजीव और मौलिक चित्र मिलता है और जो बुद्ध-वचन वहाँ बुद्ध-मुख से निःसृत दिखाये गये हैं, वे प्रायः वैसे ही हैं। अशोक उन्हें ऐसा ही मानता था और अशोक बुद्धिवादी व्यक्ति नहीं था, ऐसा हम नहीं कह सकते। जब बुद्ध-परिनिर्वाण की तीसरी शताब्दी में उत्पन्न होकर अशोक को बुद्ध-वचनों के निश्चित स्वरूप के विषय में पूर्ण सन्तोष हो गया था तो उसकी कई शताब्दियों बाद आने वाले हम, जब काल ने बहुत से पुरावृत्त को और भी ढंक लिया है, अशोक की सम्पत्ति के ही साझीदार क्यों न बन जायें ? यहाँ कुछ भय नहीं है । अभी तक हमने संस्कृत के आधार पर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया है। उसके तात्त्विक दर्शन के विषय में दाहे जो कुछ कहा जाय, बुद्ध के ऐतिहासिक व्यक्तित्व के प्रभावशाली सम्पर्क से तो हम अभी तक प्रायः वञ्चित ही रहे हैं। आज, हमने महिन्द (महेन्द्र) के द्वारा सिंहल को जो दिया था, सिंहल उसका प्रतिदान करने को प्रस्तुत है। उसने बड़े प्रयत्न और गौरव से हमारे दान को सुरक्षित रक्खा है । आज उसकी थाती हमारे लिये खुली हुई है । यहाँ हम बुद्ध और उनके पाद-मूल में बैठने वाले शिष्यों के साक्षात् दर्शन कर सकते हैं, उनके उपदेश सुन सकते हैं, जिम प्रकार के देश-काल में वे विचरते थे उसका दिग्दर्शन कर सकते हैं। बुद्ध-वचनों की स्मृतियों के साथ यद्यपि यहाँ बहुत-कुछ और भी अंकित है, और कहीं कहीं कुछ बुद्ध-परिनिर्वाण के बाद का भी काफी है, किन्तु उन सव का उपयोग बुद्ध-वचनों के लिये ही है जो स्वयं वहाँ अपनी पूर्ण विभूति और मौलिक गौरव में उपस्थित हैं। पालि-त्रिपिटक के इस
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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