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________________ ( ११३ ) आधार है -- "तेपिटकसंगहितं साट्ठकथं सब्वं थेरवादंति" । " अन्य सम्प्रदाय वालों का बहुत-कुछ साहित्य लुप्त हो चुका है । मूल तो प्रायः किसी का भी मिलता ही नहीं । चीनी और तिब्बती अनुवादों से ही आज हमें उनकी कुछ जानकारी होती है। जिन सम्प्रदायों के साहित्य का इस प्रकार कुछ परिचय मिलता है उनमें, सर्वास्तिवादी (सब्बत्थिवादी ) मुख्य है । यह एक प्रभावशाली सम्प्रदाय था जिसका आविर्भाव अशोक के समय से पहले ही हो चुका था । इस सम्प्रदाय के सूत्र, विनय और अभिधर्म तीनों पिटक मिलते हैं । किन्तु उनके चीनी अनुवाद ही आज उपलब्ध हैं, मूल रूप में वे संस्कृत में थे, किन्तु आज उनका वह रूप उपलब्ध नही । पालि-त्रिपिटक से इन सर्वास्तिवादी ग्रन्थों की तुलना की गई है, जिसके परिणाम स्वरूप इन दोनों में विषय के सम्बन्ध में मूलभूत समानताएँ पाई गई हैं, केवल विषय - विन्यास में कहीं कुछ थोड़ा बहुत अन्तर पाया जाता है। यह बात सुत्त और विनय पिटक के सम्बन्ध में तो सर्वांश में सत्य है, किन्तु अभिधम्मपिटक के विषय में दोनों परम्पराओं में ग्रन्थ- संख्या समान (सात) होते हुए भी उनमें से प्रत्येक की विषय-वस्तु की दूसरे की विषय-वस्तु के साथ कोई विशेष समता नहीं है । इस प्रकार -- स्थविरवाद का सुत्तपिटक दीघ - निकाय (३४ सूत्र ) मज्झिमनिकाय सर्वास्तिवाद का सूत्र - पिटक दीर्घागम ( ३० सूत्र - प्रधानतः बुद्धयश तथा चू० फा० नैन द्वारा पाँचवी शताब्दी ई० में अनुवादित) मध्यमागम ( गौतम संघदेव द्वारा चौथी शताब्दी में अनुवादित ) संयुक्तकागम (पाँचवी शताब्दी में गुणभद्र द्वारा अनुवादित) अंकोत्तरागम ( चौथी शताब्दी में धर्मनन्दि द्वारा अनुवादित) संयुत्त निकाय अंगुत्तर-निकाय खुद्दक निकाय क्षुद्रकागम पालि - त्रिपिटक में भी यद्यपि कभी कभी दीघ निकाय आदि के लिये दीघागम आदि शब्दों का प्रयोग होता है, किन्तु प्रधानतः 'निकाय' शब्द का ही प्रयोग १. समन्तपासादिका की बाहिरकथा । ८
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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