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________________ तीसरा अध्याय सुत्त-पिटक पालि-त्रिपिटक कहाँ तक मूल, प्रामाणिक बुद्ध वचन है ? पालि त्रिपिटक कहाँ तक मूल, प्रामाणिक बुद्ध-वचन है, इस प्रश्न का अंशतः उत्तर पालि-भाषा के स्वरूप पर विचार करते समय (प्रथम अध्याय में) दिया जा चुका है। यदि पालि मागधी भाषा का वही स्वरूप है जिसे मध्य-देश में विचरण करते हुए भगवान् बुद्ध ने प्रयुक्त किया था, तो फिर इसमें कोई सन्देह ही नहीं रह जाता कि पालि-त्रिपिटक बुद्ध-वचनों का सर्वाधिक प्रामाणिक रूप है। यदि आरम्भ से ही अनेक प्रान्तीय भाषाओं में वुद्ध-वचन सीखे जाते रहे हों तो भी हमारे पालि-माध्यम को प्राचीनतम होना ही चाहिये । पालि-त्रिपिटक का किसी दूसरी उपभाषा से अनुवाद हुआ है, लेवी के इस मत का खंडन पहले किया जा चुका है। इसी प्रकार ल्यूडर्स के उस मत का भी निराकरण किया जा चुका है जिसके अनुसार प्राचीन अर्द्ध-मागधी से, जिसके स्वरूप की अवतारणा स्वयं उनकी बुद्धि ने की है, पालि-त्रिपिटक का अनुवाद हुआ है। यह निर्विवाद है कि अशोक के समय अर्थात् तृतीय शताब्दी ईसवी पूर्व पालि-त्रिपिटक का भाषा और शैली की दृष्टि से वही स्वरूप था जो आज है । अशोक के शिलालेखों से यह बात स्पष्ट हो जाती है। उनकी भाषा, उनमें निर्दिष्ट कुछ 'धम्म-पलियायों' के नाम, सब इसी तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि तृतीय शताब्दी ईसवी पूर्व भारतीय जनता बुद्ध-वचनों के नाम से उसी संग्रह को पहचानती थी और आदरपूर्वक श्रवण और मनन करती थी, जिसे हम आज पालि-त्रिपिटक के नाम से पुकारते हैं। छन्द की दृष्टि से भी पालित्रिपिटक की प्राचीनता असंदिग्ध है। ओल्डनवर्ग ने कहा है कि पालि-त्रिपिटक की गाथाओं में प्रयुक्त छन्द वाल्मीकि रामायण से अधिक प्राचीन होना चाहिये । १. गुरुपूजाकौमुद्री, पृष्ठ ९०, मिलाइये रायस डेविड्स और कारपेंटर
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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