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________________ हुई, जिनमें मिलिन्दपञ्ह सब से अधिक प्रसिद्ध है। इतिहास का प्रसिद्ध ग्रन्थ 'दीपवंस' भी इसी युग में लिखा गया। चूंकि बुद्धघोष अनुपिटक-साहित्य मे सब से बड़ा नाम है और बुद्धघोष ने एक युग-विधायक साहित्य की रचना की, अतः उनके काल के पहले इस दिशा में कितना काम हो चुका था इसे द्योतित करने के लिये इस युग के साहित्य को 'पूर्व-बुद्धघोष' युगीन साहित्य नाम दिया जा सकता है । अनुपिटक साहित्य के इतिहास का दूसरा युग बुद्धघोष के आविर्भाव-काल से आरम्भ होता है । बुद्धघोष के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'विसुद्धिमग्ग' और उनकी अर्थकथाओं के अतिरिक्त बुद्धदत्त, धम्मपाल आदि की अर्थकथाएँ भी इसी युग में लिखी गई। पालि त्रिपिटक पर अर्थकथाओं की रचना इस युग की प्रधान विशेषता है, जिसे प्रेरणा देने वाले आचार्य बुद्धघोष ही हैं। अतः इस युग को 'बुद्धघोष-युग' नाम दिया गया है। इस युग की रचना ५वीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक चलती है। विशाल अर्थकथा-साहित्य के अतिरिक्त लंका का प्रसिद्ध इतिहास-ग्रन्थ 'महावंस' भी इसी युग में रचा गया। व्याकरण के क्षेत्र में कच्चान का व्याकरण और दर्शन एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनिरुद्ध का प्रसिद्ध 'अभिधम्मत्थसंगह' भी इसी यग की रचनाएँ हैं। इस युग में जो अर्थ कथा-साहित्य लिखा गया उसी की टीकाएँ-अनुटीकाएँ वाद की शताब्दियों में लिखी जाती रहीं। यह बारहवीं शताब्दी से लेकर अब तक का सुदीर्घ युग है। प्रायः बुद्धघोष और उनके समकालीन आचार्यों के दिखाये हुए ढंग पर ही और उनके ही ग्रन्थों के उपजीवी स्वरूप साहित्य की रचना इस युग में होती रही है। अतः इस युग को 'बुद्ध घोष-युग की परम्परा अथवा टीकाओं का युग' नाम दिया गया है। बारहवीं शताब्दी में राजा पराक्रमबाहु के समय में लंका में आचार्य बुद्ध घोष आदि की अर्थकथाओं पर मगध-भाषा (पालि) में टीकाएँ लिखने का आयोजन शुरू किया गया। प्रसिद्ध सिंहली भिक्षु सारिपुत्त और उनकी शिप्य-मंडली ने इस दिशा में बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में बड़ा काम किया । मूल 'महावंस' का 'चूलवंस' के नाम से आगे परिवर्द्धन भी इसी युग की घटना है। १५वीं शताब्दी से बरमा में बौद्ध साहित्य के अध्ययन की बड़ी प्रगति हुई । बरमी भिक्षुओं के अध्ययन का प्रधान विषय 'अभिधम्म' रहा । इस दिशा में उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ दिये है, जिनमे ‘अभिधम्मत्थ संगह' का एक लम्बा सहायक माहित्य है । व्याकरण-सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ भी इस युग में लिखे गये। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ठीक वर्तमान समय तक लंका, बरमा, स्याम और भारत मे अनुपिटक साहित्य की रचना होती
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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