SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८९ ) ८. स्थविर शोण और उत्तर --सुवर्ण भूमि (मुवण्ण भूमि) को (दोनों भाई) (वरमा) १. महेन्द्र (महिन्द, ऋष्ट्रिय), (इट्टिय) उत्रिय (उत्तिय) शम्बल (सम्बल)--ताम्म्रपर्णी (तम्बपण्णि) को और भद्रगाल (भद्दमाल) ये (लंका) पाँच भिक्षु उपर्युक्त सूची ऐतिहासिक रूप से प्रामाणिक है । साँची-स्तूप में इन आचार्यो म मे कुछ के नाम उत्कीर्ण है २ । अजन्ता की चित्रकारी में भी एक चित्र महेन्द्र और मंघमित्रा (अशोक के प्रव्रजित पुत्र और पुत्रो, जो अन्य भिक्षुओं के माथ लंका में धर्म प्रचारार्थ गये) की सिंहल-यात्रा को अमर बनाता है। फिर लंका में आज तक महेन्द्र और संघमित्रा तथा उनके साथी अन्य भिक्षुओं की स्मृति के लिये जो जीवित श्रद्धा विद्यमान है, वह केवल कल्पना पर ही आश्रित नहीं हो सकती। अशोक का धर्म-प्रचार का कार्य यहीं तक सीमित नहीं था। उसने अपने धर्मप्रचारक उम समय के प्रसिद्ध पाँच य नानी राज्यों में भी भेजे । इस प्रकार सिरिया और बैक्ट्रिया के राजा अन्तियोकस (एंटियोकम थियोस--ई० पू० २६१-२४६ ई० पू०) मिश्र के राजा तुरमय (टोलेमी फिलाडेल्फस--ई० पू० २८५-२८७ ई० पू०) मेसिडोनिया के राजा अन्तकिन (एटिगोनस गोनटस--ई० पू० ७८०३९ ई० पू०) सिरीनी के राजा मग (मेगस---ई० पू० २८५-२५८ ई० पू०) और एपिरस के राजा अलिक मुन्दर (एलेक्जेन्डर-ई० पू० २७२-०५८ ई० पू०) के देगों तक अगोक कालीन बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियाँ बुद्ध का सन्देश लेकर गये।' इम सव विस्तत धर्म-प्रचार के इतिहास में से हम यहाँ लंका-सम्बन्धी प्रचार-कार्य में ही अधिक सम्बन्ध है । लंका में महेन्द्र और उनके अन्य साथी बुद्ध-धर्म को ले गये । वहाँ के राजा देवानंपिय तिस्स ने भारतीय भिक्षुओं का बड़ा सत्कार किया और उनके सन्देश को स्वीकार किया। स्थविर महेन्द्र और उनके सार्थी लंका में - - - - - - - - - १. देखिये, बुद्धिस्टिक स्टडीज, पृष्ठ २०८ और ४६१; मिलाइये, अशोक की धर्मलिपियाँ, प्रथम भाग, पृष्ठ १६१-६२ २. स्थविर मज्झिम को वहाँ 'हिमवान् प्रदेश का उपदेशक' (हेमवता. चरिय) कह कर स्मरण किया गया है। ३. शिलालेख २
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy