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________________ ( ८६ ) मिलता। अतः कुछ विद्वानों ने इसकी ऐतिहासिकता में सन्देह किया है। वास्तव में बात यह है कि अशोक के समय तक बौद्ध संघ १८ सम्प्रदायों में विभक्त होचुका था और जिस सम्प्रदाय का पक्ष ग्रहण कर यह सभा बुलाई गई थी अथवा जिस सम्प्रदाय को इस सभा के बाद बुद्ध-धर्म का वास्तविक प्रतिनिधि माना गया था वह विभज्यवादी या स्थविरवादी3 सम्प्रदाय था। अतः यह बहुत सम्भव है कि दूसरे सम्प्रदाय वालों ने इसे स्थविरवादी या विभज्यवादी भिक्षुओं की ही अपनी सभा मानकर इसका उल्लेख सामान्य बौद्ध संगीतियों के रूप में न किया हो। अशोक के शिलालेखों का इस सम्बन्ध में मौन रखने का यह कारण हो सकता है कि अशोक ने वास्तव में इस सभा में कोई महत्वपूर्ण भाग नहीं लिया १. नवें शिलालेख में कुछ 'कथावत्थु के समान शैली अवश्य दृष्टिगोचर होती है। देखिये भांडारकर और मजूमदारः इन्सक्रिप्शन्स ऑव अशोक, पृष्ठ ३४-३६ २. जिनमें मुख्य मिनयफ, कीथ, मैक्स वेलेसर, वार्थ, फ्रैक और लेवी हैं। डा० टी० डब्ल्यू० रायस डेविड्स, श्रीमती रायसडेविड्स, विटरनित्न और गायगर इस सभा को ऐतिहासिक रूप से प्रामाणिक मानते है। देखिये विंटरनित्ज़; हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर , जिल्द दूसरी पृष्ठ १६-९-७० पद संकेत ५, एवं गायगरः पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पष्ठ ९ पद संकेत २ में निदिष्ट साहित्य ।। ३. स्थविरवाद का अर्थ है स्थविरों अर्थात् वृद्ध, ज्ञानी पुरुषों और तत्त्व. दशियों का मत । बुद्ध के प्रथम शिष्यों के लिये 'स्थविर' शब्द का प्रयोग किया गया है। बुद्ध-मन्तव्य के विषय में उनका मत ही सर्वाधिक प्रामाणिक था। अतः स्थविरवाद का अर्थ 'प्रामाणिक मत' भी हो गया। स्थविरवादी भिक्षु 'विभज्यवाद' के अनुयायी थे। अतः 'विभज्यवाद' (पालि, विभज्जवाद) और स्थविरवाद (पालि, थेरवाद) दोनों एक ही वस्तु के द्योतक हैं। 'विभज्यवाद' का अर्थ है विभाग कर, विश्लेषण कर, प्रत्येक वस्तु के अच्छे अंश को अच्छा और बुरे अंश को बुरा बतलाना। इसका उल्टा एकांशवाद (पालि, एकंसवाद) है, जो सोलहो आने किसी वस्तु को अच्छी या बुरी कह डालता है। भगवान् बुद्ध ने सुभ-सुत्त (मज्झिम. २।५।९) में अपने को उपर्युक्त अर्थ में
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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